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( १३ ) मान्यतानुरूप पाठ-भेदों के साथ दोनों सम्प्रदायों को मान्य है और दोनों ही संप्रदाय के आचार्यों ने टीका-टिप्पण-भाष्य आदि लिखे । यही स्थिति पचसंग्रह की भी है जिसके मूल प्रकरण दोनों सम्प्रदायों में थोड़े से पाठ-भेदों के साथ समान रूप से मान्य हैं और दोनों ही सम्प्रदाय के आचार्यों ने प्राकृत भाषा में भाष्य, गाथायें, चूर्णियां और टीका-टिप्पण ग्रन्थ लिखे हैं।
दोनों सम्प्रदायों के पंचसंग्रहों में निबद्ध, संकलित या संगृहीत पांच ग्रन्थों और प्रकरणों के नाम इस तरह दो प्रकार से मिलते हैंश्वेताम्बर पंचसंग्रह
प्रथम प्रकार-१ सत्कर्मप्राभृत, २ कर्मप्रकृति, ३ कषायप्राभृत ४ शतक ५ सप्ततिका।
द्वितीय प्रकार-१ योगोपयोग मार्गणा २ बंधक ३ बधव्य ४ बंधहेतु ५ बंधविधि। . प्रस्तुत ग्रन्थ के रचयिता चन्द्रषि महत्तर हैं। अतः रचयिता आचार्य ने स्वयं ही दोनों प्रकार के नाम दिये हैं। जिनमें प्रथम प्रकार के नामों का उल्लेख करते हए कहा है-इस ग्रन्थ में शतक आदि पांच ग्रन्थ यथास्थान संक्षिप्त करके संग्रह किये गये हैं, इसीलिये इस ग्रन्थ का नाम पंचसंग्रह है अथवा इसमें बंधक आदि पांच अधिकार वर्णित हैं, इसलिये भी इसका पंचसंग्रह यह नाम सार्थक या यथार्थ है।
दिगम्बर पंचसंग्रह में पांचों प्रकरणों के नाम इस प्रकार से बतलाये हैं
प्रथम प्रकार-१ जीवसमास २ प्रकृति समुत्कीर्तन, ३ बंधस्तव ४ शतक ५ सप्ततिका।
द्वितीय प्रकार-१ बंधक, २ बध्यमान, ३ बंधस्वामित्व ४ बंधकारण ५ बंधभेद।
दोनों प्रकार के नामों के विषय में यह ज्ञातव्य है कि संग्रहकार ने प्रथम प्रकारगत पांचों प्रकरणों के संक्षिप्त सूत्रात्मक रूप को सुरक्षित
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