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पंचसंग्रह : १० चाहिये । जो इस प्रकार हैं
अनन्तरोक्त छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान में पराघात और अन्यतर विहायोगति का प्रक्षेप करने पर अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान जिसने स्वर और उच्छ्वास का रोध किया है, ऐसे सामान्य केवली को होता है। यहाँ छह संस्थान और विहायोगतिद्विक का व्यत्यास करने से बारह भंग होते हैं।
इस अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान को तीर्थकरनाम युक्त करने पर उनतीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । इस उनतीस प्रकृतिक उदयस्थान का उदय ऐसे तीर्थकर केवली को होता है जिनने स्वर और उच्छवास का रोध किया है। तीर्थंकर केवली के अशुभ संस्थान और अशुभ विहायोगति का उदय नहीं होने से एक ही भंग होता है । ___अनन्तरोक्त सामान्यकेवली संवन्धी अट्ठाईस प्रकृतियों के उदय में उच्छ्वास को मिलाने पर उनतीस प्रकृतिक एवं तीर्थकर संबन्धी उनतीस प्रकृतियों के उदय में उच्छ्वास का प्रक्षेप करने पर तीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यह दोनों उदयस्थान ऐसे सामान्य केवली और तीर्थंकर केवली को अनुक्रम से होते हैं जिन्होंने स्वर का रोध किया है । इनमें से सामान्य केवली संबन्धी उनतीस प्रकृतिक
१ यहां सामान्य केवली को अट्ठाईस और उनतीस प्रकृतिक उदयस्थान में
छह सस्थान और विहायोगतिद्विक के साथ बारह-बारह भंग बतलाये हैं । परन्तु सित्तरिचूर्णि और सप्ततिका भाष्य गाथा ११८,१६ को टीका में स्वर के रोध के बाद उनतीस और उच्छ्वास के रोध के बाद अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान होने से उस समय काययोग के निरोध करने का भी समय होने से अत्यन्त नीरस ईख के समान विहायोगतिद्विक के रस विहीन दलिकों का ही उदय होता है । किन्तु गति की चेष्टा नहीं होती हैं । जिससे अट्ठाईस और उनत स के उदयस्थान में सामान्य केवली को बारह के बदले छह संहननों के छह भंग ही बताये हैं। विज्ञजन स्पष्ट करने की
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