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पंचसंग्रह : १० ___ इसके बाद शरीरस्थ को आनुपूर्वी के उदय बिना के बीस प्रकृतिक उदयस्थान में औदारिकद्विक, छह संस्थानों में से कोई एक संस्थान, छह संहनन में से कोई एक संहनन, उपघात और प्रत्येक इन छह प्रकृतियों को मिलाने पर छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ पर दो सौ नवासी (२८६) भंग होते हैं। उनमें पर्याप्त के छह संहनन, छह संस्थान, सुभग-दुर्भग, आदेय-अनादेय और यशःकीर्ति-अयशःकीर्ति का परावर्तन करने पर दो सौ अठासी भंग होते हैं और अपर्याप्त को परावर्तमान हुण्डसंस्थान आदि सभी अशुभ प्रकृतियों का उदय होने से एक ही भंग होता है। मतान्तर से एक सौ पैंतालीस (१४५) भंग होते हैं। ___इन्हों छब्बीस प्रकृतियों के उदय में शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त होने के बाद पराघात और विहायोगतिद्विक में से एक को मिलाने पर अट्ठाईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी जो पर्याप्त के छब्बीस प्रकृतिक उदय के दो सौ अठासी भंग कहे हैं, उनको विहायोगतिद्विक से गुणा करने पर पाँच सौ छियत्तर (५७६) भंग होते हैं। अपर्याप्त को अट्ठाईस प्रकृतियों का उदय नहीं होता है । जिससे इस उदयस्थान से तत्संबन्धी भंग नहीं होते हैं । मतान्तर से दो सौ अठासी भंग होते हैं।
इसके बाद प्राणापानपर्याप्ति से पर्याप्त के उच्छ्वास के उदय को मिलाने पर उनतीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ पूर्व की तरह पाँच सौ छियत्तर भंग होते हैं। अथवा शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त को उच्छ्वास का उदय होने से पहले किसी को उद्योत का उदय होने से भी उनतीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी पाँच सौ छियत्तर (५७६) भंग होते हैं। सब मिलाकर उनतीस प्रकृतिक उदयस्थान के ग्यारह सौ बावन (११५२) भंग और मतान्तर से पाँच सौ छियत्तर भंग होते हैं।
तत्पश्चात् भाषापर्याप्ति से पर्याप्त को सुस्वर-दुःस्वर में से एक का उदय मिलाने पर तीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ उच्छ्
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