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________________ मप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ८२ १५७ अब सामान्य पंचेन्द्रियों के उदयस्थानों का विचार करते हैं । सामान्य पंचेन्द्रिय तिर्यंच के उदयस्थान सामान्य-प्राकृत तिर्यंच पंचेन्द्रिय के यह प्रकृति संख्या वाले छह उदयस्थान हैं-२१, २६, २८, २९, ३०, और ३१ प्रकृतिक । इनका विवरण इस प्रकार है तिर्यंचगति, तिल्चानुपूर्वी, पंचेन्द्रियजाति, वसनाम, बादरनाम, पर्याप्त-अपर्याप्त में से एक, सुभग-दुर्भग में से एक, आदेय-अनादेय में से एक, यशःकीर्ति-अयश:कीति में से एक, तैजस-कार्मण, अगुरुलघु, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, निर्माण और वर्णचतुष्क । कुल मिलाकर ये इक्कीस प्रकृतियां हैं। ____ इन इक्कीस प्रकृतियों का उदय भवान्तर में जाते तिर्यंच पंचेन्द्रिय को होता है । यहाँ नौ भंग होते हैं। उनमें पर्याप्त नाम के उदय वाले को सुभग-दुर्भग, आदेय-अनादेय और यशःकीर्ति-अयशःकीर्ति के साथ आठ तथा अपर्याप्त नाम के उदय वाले को दुर्भग, अनादेय और अयशःकीर्ति के साथ एक भंग होता है। क्योंकि अपर्याप्त नाम के उदय वाले को परावर्तमान अप्रशस्त प्रकृतियों का ही उदय होता है, जिससे विकल्प का अभाव होने से एक ही भंग होता है। कितने ही आचार्यों का मंतव्य इस प्रकार है-सुभगनाम के उदय वाले को आदेय और दुर्भगनाम के उदय वाले को अनादेय का उदय अवश्य होता है। जिससे सुभग-आदेय और दुर्भग-अनादेय का साथ ही उदय होता है । इसलिये पर्याप्त का सुभग-आदेय युगल और दुर्भगअनादेय युगल का यशःकीर्ति और अयश:कीर्ति के साथ व्यत्यास करने से चार भंग होते हैं और अपर्याप्त का एक भंग होता है। इस प्रकार मतान्तर से कुल पाँच भंग होते हैं। इसी प्रकार से आगे के उदयस्थानों में भी मतान्तर से भंगों की विषमता का विचार स्वयमेव कर लेना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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