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पंचसंग्रह : १० तत्पश्चात् भाषापर्याप्ति से पर्याप्त के उच्छ्वास युक्त उनतीस प्रकृतियों के उदय में सुस्वर या दुःस्वर में से किसी एक के उदय को मिलाने पर तीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ चार भंग इस प्रकार होते हैं
१. सुस्वर-यशःकीर्ति, २. सुस्वर-अयशःकीर्ति, ३. दुःस्वर-यश:कीर्ति और ४. दुःस्वर-अयशःकीर्ति ।
अथवा स्वर का उदय होने के पहले उच्छ्वासपर्याप्ति से पर्याप्त के उद्योत का उदय होता है। अत: उससे भी तीस प्रकृतियों का उदय होता है। यहां यशःकीर्ति-अयश:कीर्ति के साथ दो भंग होते हैं।
कुल मिलाकर तीस प्रकृतिक उदयस्थान के छह भंग होते हैं।
तदनन्तर भाषापर्याप्ति से पर्याप्त को स्वर सहित तीस प्रकृतियों के उदय में उद्योत का उदय मिलाने पर इकत्तीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहां सुस्वर-दुःस्वर, यश:कीर्ति-अयशःकीर्ति के साथ चार भंग इस प्रकार होते हैं
१. सुस्वर-यशःकीर्ति, २. सुस्वर-अयशःकीर्ति, ३. दुःस्वरयश:कीति, ४. दुःस्वर-अयशःकीर्ति ।
प्रत्येक तिर्यंच में इकत्तीस प्रकृतियों का उदय उद्योत के साथ और मनुष्यों में इकत्तीस प्रकृतियों का उदय तीर्थंकर नाम के साथ होता है।
द्वीन्द्रिय के समस्त उदयस्थानों के कुल मिलाकर बाईस भंग होते हैं। ___ इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय के भी छह-छह उदयस्थान
और उनके बाईस-बाईस भंग जानना चाहिये। इतना विशेष है कि द्वीन्द्रियजाति के स्थान पर त्रीन्द्रिय के लिये त्रीन्द्रियजाति और चतुरिन्द्रिय के लिये चतुरिन्द्रियजाति शब्द का प्रयोग करना चाहिये।
इस प्रकार विकलेन्द्रियों के कुल छियासठ भंग होते हैं।
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