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________________ सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ८१ शब्दार्थ-परघायसासआयवजुत्ता-पराघात, उच्छ्वास और आतप से युक्त करने पर, पणछक्कसत्तवीसा-पच्चीस, छब्बीस और सत्ताईस, सा-वे प्रकृतियाँ, संघयणअंगजुत्ता–संहनन और अंगोपांग युक्त, चउवीस-चौबीस, छवीस-छब्बीस, मणुतिरिए-मनुष्य तियंचों में होती हैं। गाथार्थ-पूर्वोक्त चौबीस प्रकृतियों को अनुक्रम से पराघात, उच्छ्वास और आतपयुक्त करने पर पच्चीस, छब्बीस और सत्ताईस प्रकृतियाँ होती हैं। पूर्वोक्त चौबीस प्रकृतियों को संहनन और अंगोपांगयुक्त करने पर छब्बीस होती हैं और उनका उदय मनुष्य तथा तियचों को होता है। विशेषार्थ-चौबीस के उदय में पराघात का उदय मिलाने पर पच्चीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है और पच्चीस के उदय में उच्छवास का उदय मिलाने पर छब्बीस का और उसमें आतप का उदय मिलाने पर सत्ताईस प्रकृतियों का उदयस्थान होता है । यहाँ आतप का उदय उपलक्षण हैं। उससे उद्योत का भी ग्रहण कहना चाहिये। जिससे यह अर्थ हुआ कि उद्योत का उदय मिलाने पर भी सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । आतप और उद्योत का उदय एक साथ एक जीव को नहीं होता है। जिसको उद्योत का उदय हो उसको आतप का और जिसको आतप का उदय हो उसको उद्योत का उदय नहीं होता है। भवांतर में जाने से लेकर स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण करे तब तक जिस क्रम से प्रकृतियों का उदय होता है, उसको यहाँ बताया है । इस प्रकार एकेन्द्रिय के उदयस्थान और उनमें होने वाले विकल्प जानना चाहिये। विकलत्रिकों के उदयस्थान अब क्रम-प्राप्त विकलत्रिकों के उदयस्थानों को बतलाते हैं। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय इन तीन जाति के जीवों की विकलत्रिक यह संज्ञा है। उनमें से पहले द्वीन्द्रिय के उदयस्थानों का निरूपण करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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