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________________ १३८ पंचसंग्रह : १० है। क्योंकि उनमें वैक्रिय शरीर की विकुर्वणा करने की शक्ति होती ही नहीं है । तथा दुर्भग और अनादेय का उदय होने पर भी देवगति का उदय होता है । अर्थात् दुर्भग और अनादेय के उदय के साथ देवगति नामकर्म का उदय विरोधी नहीं है और 'दुभगअणाएज्ज उदएवि' पद में उदय के अनन्तर आगत 'वि-अपि' शब्द बहुल अर्थ वाला होने से यह अर्थ हुआ कि दुर्भग, अनादेय और अयशःकीति के उदय के साथ आहारकद्विक का उदय नहीं होता है किन्तु अस्थिर और अशुभ के उदय के साथ आहारकनाम का उदय होता है, क्योंकि ये दोनों प्रकृतियां ध्र वोदयी हैं । तथा__ 'सूसरउदओ विगलाण होइ' अर्थात् विकलेन्द्रियों के सुस्वर का उदय होता है, उनके सुस्वर का उदय विरोधी नहीं है तथा देशविरत अथवा सर्वविरत मनुष्यों के यथायोग्य रूप से वैक्रिय एवं आहारक शरीर की जब विकुर्वणा करें तब उद्योत का उदय होता है किन्तु अन्य सामान्य मनुष्य के उद्योत का उदय नहीं होता है ।। __इस प्रकार से जिसका उदय रहते जिसका उदय संभव है या नहीं है, का विचार करके अब नामकर्म के उदयस्थानों को बतलाते हैं। नामकर्म के उदयस्थान अडनववीसिगवीसा चउवीसेगहिय जाव इगितीसा। चउगइएसु बारस उदयट्ठाणाइं नामस्स ॥७३॥ १ मनुष्यगति में वैक्रिय और आहारक शरीरी यति को उद्योत का उदय होता है, अन्य किसी मनुष्य को नहीं होता है। प्रथमकर्मग्रन्थ में 'जइदेवुत्तर विक्किय' पद से यति और देव उत्तर वैक्रिय करें तब उनको उद्योत का उदय होता है, कहा है तथा कर्मप्रकृति उदीरणाकरण गाथा १३ में तथा उसकी टीका में भी इसी प्रकार कहा है। छठे कर्मग्रन्थ में भी ऐसा ही संकेत किया है परन्तु यहाँ वैक्रिय शरीर में वर्तमान देविरत मनुष्य को भी उद्योत का उदय होता है, यह कहा है । विज्ञजन समाधान करने की कृपा करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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