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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ७३,७४
शब्दार्थ---अडनववीसिगवीसा-आठ, नौ, बीस, इक्कीस, चउवीसेगहिय-चौबीस और उसके बाद एक-एक अधिक, जाव-तक, इगितीसाइकत्तीस, चउगइएसु-चारों गतियों में, बारस-बारह, उदयट्ठाणाईउदयस्थान, नामस्स-नामकर्म के ।
गाथार्थ-चारों गति के जीवों में आठ, नौ, बीस, इक्कीस, चौबीस और उसके बाद एक-एक अधिक इकत्तीस तक नामकर्म के बारह उदयस्थान होते हैं। विशेषार्थ--'चउगइएसुबारस' अर्थात् चारों गति के जीवों की अपेक्षा सब मिलाकर नामकर्म के बारह उदयस्थान होते हैं। जो इस प्रकार हैं
आठ, नौ, बीस, इक्कीस, चौबीस प्रकृतिक और उसके बाद चौबीस में एक-एक बढ़ाते यावत् इकतीस अर्थात् पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकत्तीस प्रकृतिक । ___ इन बारह उदयस्थानों में से चतुर्गति के जीवों के यथायोग्य संभव उदयस्थानों का आगे विचार किया जा रहा है । चारों गति में नामकर्म के उदयस्थान
मणुएसु अचउवीसा वीसडनववज्जियाउ तिरिएसु ।
इगपण सगट्टनववीस नारए सुरे सतीसा ते ॥७४॥ शब्दार्थ-मणुएसु-~-मनुष्यों में, अचउवीसा-चौबीस प्रकृतिक के सिवाय, वीसडनववज्जियाउ-बीस, आठ, नो प्रकृतिक के सिवाय, तिरिएसुतिर्यंचों में, इगपण सगट्ठनववीस-एक, पांच, सात, आठ, नौ अधिक बीस, नारए-नारकों में, सुरे–देवों में, सतीसा-तीस प्रकृतिक सहित, तेनरकगति में कहे गए वे पांच ।
गाथार्थ-मनुष्यों में चौबीस के सिवाय सब, तिर्यंचों में बीस, आठ और नौ प्रकृतिक के सिवाय शेष सब, एक, पांच, सात, आठ और नौ अधिक बीस प्रकृतिक नारकों में तथा तीस सहित नरकोक्त पांचों उदयस्थान देवगति में होते हैं ।
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