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पंचसंग्रह : १०
गाथार्थ-साधारण, सूक्ष्म, आतप, स्थावर, नरकद्विक, एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जाति, हुण्डसंस्थान, अपर्याप्त और सेवार्तसंहनन रूप साधारणादि तेरह प्रकृतियों को मिथ्यादृष्टि जीव ही बांधते हैं।
विशेषार्थ-गाथा में नामकर्म की मिथ्यात्व गुणस्थान तक बंधने वाली प्रकृतियों का नाम निर्देश किया है। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
बंधयोग्य मानी गई नामकर्म की सड़सठ प्रकृतियों में से तीर्थंकर नाम और आहारकद्विक इन तीन प्रकृतियों को मिथ्यादृष्टि बांधते ही नहीं हैं। क्योंकि इनके बंध में अनुक्रम से सम्यक्त्व और चारित्र हेतु हैं। इसलिये ये तो मिथ्यात्व गुणस्थान में नहीं हैं, जिससे इन तीन प्रकृतियों को कम करने पर शेष चौंसठ प्रकृतियां मिथ्यादृष्टि जीव बांधते हैं। इनमें से भी साधारण, सूक्ष्म, आतप, स्थावर, नरकद्विक, एकेन्द्रियजाति, विकलेन्द्रियजातित्रिक, हुण्डसंस्थान, अपर्याप्त नाम और सेवार्त संहनन ये तेरह प्रकृतियां तो मिथ्यादृष्टि ही बांधते हैं, अन्य सासादन आदि गुणस्थानवर्ती जीव नहीं। क्योंकि इन तेरह के बंध में मिथ्यात्वमोह का उदय कारण है। मिथ्यात्व का उदय पहले गुणस्थान तक होने से साधारण आदि तेरह प्रकृतियों का बंधविच्छेद मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में ही होता है। जिससे पूर्वोक्त तीर्थंकरनाम आहारकद्विक के साथ इन तेरह प्रकृतियों को सड़सठ में से कम करने पर शेष इक्यावन प्रकृतियां सासादन गुणस्थान में बंधती हैं ।
इस प्रकार से मिथ्यात्व गुणस्थान में बांधयोग्य नामकर्म की प्रकृतियों को बतलाने के बाद अब सासादन गुणस्थान में बंधयोग्य नामकर्म का प्रकृतियों को बतलाते हैं। सासादन गुणस्थान में बंधयोग्य नामकर्म की प्रकृतियां
सासायणेऽपसत्थाविहगगई दूसरदुभगुज्जोवं । अणाएज्जं तिरियदुर्ग मज्झिमसंघयणसंठाणा ॥६५॥
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