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पंचसंग्रह : १०
इन पच्चीस प्रकृतियों में परस्पर विरुद्ध प्रकृतियों को परावर्तन क्रम से ग्रहण करने पर बीस भंग इस प्रकार होते हैं- बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, शुभ और स्थिर के साथ यशः कीर्ति का बंध करने पर एक भंग और अयश: कीर्ति का बंध करने पर दूसरा भंग होता है । ये दो भंग तो शुभ नाम के बंध के साथ हुए और इसी प्रकार शुभनाम के बदले अशुभ नाम को ग्रहण करने पर उसके साथ भी दो भंग होते हैं । इस प्रकार कुल चार भंग हुए । यह चार स्थिर नामकर्म के साथ हुए । इसी प्रकार स्थिर नाम के बदले अस्थिर नाम का ग्रहण करने पर उसके साथ भी पूर्वोक्त विधि से चालना करने पर चार भंग होते हैं । ये आठ भंग हुए और वे बादर - पर्याप्त के साथ होते हैं । उन आठ भंगों के नाम इस प्रकार हैं
१. स्थिर, शुभ, यशः कीर्ति, २. स्थिर शुभ अयशः कीर्ति, ३. स्थिर, अशुभ, यश कीर्ति, ४. स्थिर, अशुभ, अयश: कीर्ति, ५. अस्थिर, शुभ, यशः कीर्ति, ६. अस्थिर, शुभ, अयशःकीर्ति, ७. अस्थिर, अशुभ, यशःकीर्ति, ८. अस्थिर, अशुभ, अयशः कीर्ति ।
प्रत्येक प्रकार से होने वाले पच्चीस प्रकृतिक बंधस्थान में बादर और प्रत्येक को नहीं बदलने से और स्थिरादि प्रकृतियों को बदलने से उसके आठ भंग होते हैं । इसी प्रकार अन्यत्र भी भंग रचना समझ लेना चाहिये ।
अब यदि प्रत्येक नामकर्म के स्थान पर साधारण नामकर्म को ग्रहण करे तब स्थिर - अस्थिर, शुभ-अशुभ की अयशःकीर्ति के साथ चालना करने से चार भंग होते हैं। क्योंकि साधारणनामकर्म के बंध के साथ यशःकीर्ति नामकर्म नहीं बंधता है । इसलिये उस सम्बन्धी चार भंग नहीं होते हैं, किन्तु अयशःकीर्ति से सम्बन्धित चार भंग होते हैं तथा सूक्ष्म, पर्याप्त और प्रत्येक नामकर्म का बंध होने पर स्थिर अस्थिर, शुभ-अशुभ और अयशः कीर्ति के साथ चार भंग एवं सूक्ष्म, पर्याप्त और साधारण नाम का बंध होने पर भी स्थिर अस्थिर,
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