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________________ ११८ पंचसंग्रह : १० इन पच्चीस प्रकृतियों में परस्पर विरुद्ध प्रकृतियों को परावर्तन क्रम से ग्रहण करने पर बीस भंग इस प्रकार होते हैं- बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, शुभ और स्थिर के साथ यशः कीर्ति का बंध करने पर एक भंग और अयश: कीर्ति का बंध करने पर दूसरा भंग होता है । ये दो भंग तो शुभ नाम के बंध के साथ हुए और इसी प्रकार शुभनाम के बदले अशुभ नाम को ग्रहण करने पर उसके साथ भी दो भंग होते हैं । इस प्रकार कुल चार भंग हुए । यह चार स्थिर नामकर्म के साथ हुए । इसी प्रकार स्थिर नाम के बदले अस्थिर नाम का ग्रहण करने पर उसके साथ भी पूर्वोक्त विधि से चालना करने पर चार भंग होते हैं । ये आठ भंग हुए और वे बादर - पर्याप्त के साथ होते हैं । उन आठ भंगों के नाम इस प्रकार हैं १. स्थिर, शुभ, यशः कीर्ति, २. स्थिर शुभ अयशः कीर्ति, ३. स्थिर, अशुभ, यश कीर्ति, ४. स्थिर, अशुभ, अयश: कीर्ति, ५. अस्थिर, शुभ, यशः कीर्ति, ६. अस्थिर, शुभ, अयशःकीर्ति, ७. अस्थिर, अशुभ, यशःकीर्ति, ८. अस्थिर, अशुभ, अयशः कीर्ति । प्रत्येक प्रकार से होने वाले पच्चीस प्रकृतिक बंधस्थान में बादर और प्रत्येक को नहीं बदलने से और स्थिरादि प्रकृतियों को बदलने से उसके आठ भंग होते हैं । इसी प्रकार अन्यत्र भी भंग रचना समझ लेना चाहिये । अब यदि प्रत्येक नामकर्म के स्थान पर साधारण नामकर्म को ग्रहण करे तब स्थिर - अस्थिर, शुभ-अशुभ की अयशःकीर्ति के साथ चालना करने से चार भंग होते हैं। क्योंकि साधारणनामकर्म के बंध के साथ यशःकीर्ति नामकर्म नहीं बंधता है । इसलिये उस सम्बन्धी चार भंग नहीं होते हैं, किन्तु अयशःकीर्ति से सम्बन्धित चार भंग होते हैं तथा सूक्ष्म, पर्याप्त और प्रत्येक नामकर्म का बंध होने पर स्थिर अस्थिर, शुभ-अशुभ और अयशः कीर्ति के साथ चार भंग एवं सूक्ष्म, पर्याप्त और साधारण नाम का बंध होने पर भी स्थिर अस्थिर, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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