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________________ पंचसंग्रह : १० पुरुषवेद से क्षपकश्रेणि मांडने वाले के उपर्युक्त क्रमानुसार प्रकृतियों का क्षय होता है, यानि उसे उपर्युक्त सत्तास्थान होते हैं। नपुसकवेद से श्रेणि आरम्भ करने वाला स्त्रीवेद और नपुसकवेद का युगपत् क्षय करता है। उन दो का जिस समय क्षय होता है उसी समय पुरुषवेद के बंध का विच्छेद होता है। उसके बाद पुरुषवेद और हास्यादिषट्क का एक साथ ही क्षय करता है। जिससे उसे पाँच के बंध और दो के उदय में आठ कषाय का जब तक क्षय न किया हो तब तक इक्कीस प्रकृतिक और आठ कषाय का क्षय करे तब तेरह प्रकृतिक सत्तास्थान होता है तथा चार के बंध और एक के उदय में ग्यारह प्रकृतिक तथा हास्यषट्क तथा पुरुषवेद का क्षय होने पर चार प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । तत्पश्चात् पुरुषवेद से श्रेणि आरम्भ करने वाले की तरह उदयस्थान होते हैं। स्त्रीवेद से क्षपकश्रेणि आरंभ करने वाला पहले नपुसकवेद का क्षय करता है, उसके बाद अन्तर्मुहूर्त में स्त्रीवेद का क्षय करता है । जिस समय स्त्रीवेद का क्षय हुआ उसी समय पुरुषवेद का बंधविच्छेद होता है और तत्पश्चात् पुरुषवेद और हास्यादिषट्क को एक साथ क्षय करता है। जिससे उसे पांच के बंध और दो के उदय में आठ कषाय का जब तक क्षय न हुआ हो तब तक इक्कीस का, आठ कषाय का क्षय होने के बाद तेरह का और नपुसकवेद का क्षय होने पर बारह प्रकृति रूप सत्तास्थान होता है । तथा___ चार के बंध और एक के उदय के स्त्रीवेद का क्षय होने पर ग्यारह का और हास्यषट्क तथा पुरुषवेद का क्षय होने पर चार का सत्तास्थान होता है । तत्पश्चात् पुरुषवेद से श्रोणि आरम्भ करने वाले की तरह उदयस्थान तथा सत्तास्थान होते हैं। वे इस प्रकार-जब तक नपुसकवेद या स्त्रीवेद से श्रेणि आरम्भ करने वाला हास्यादिषट्क और पुरुषवेद का क्षय न करे तब तक वेदोदयरहित किसी भी एक कषाय के उदय में वर्तमान चार के बंधक को ग्यारह प्रकृतिक सत्तास्थान होता है। पुरुषवेद और हास्यषट्क का युगपत् क्षय हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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