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सप्ततिका प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४३, ४४
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उपशांत मोहगुणस्थान में इक्कीस, चौबीस और अट्ठाईस प्रकृतिक इस तरह तीन-तीन सत्तास्थान होते हैं । उनमें से इक्कीस प्रकृतिक सत्तास्थान क्षायिक सम्यग्दृष्टि के अनन्तानुबंधि के विसंयोजक औपशमिक सम्यग्दृष्टि के चौबीस और सप्तक के उपशमक सम्यग्दृष्टि के अट्ठाईस प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । उपर्युक्त समस्त सत्तास्थान यथासंभव दो के उदय में, एक के उदय में और अनुदय में उपशम श्रेणि में होते हैं । उनमें से उपशम श्रेणि में नौवें गुणस्थान में पाँच के बंध दो के उदय में, चार के बंध एक के उदय में, तीन के बंध एक के उदय में, दो के बंध एक के उदय में, और एक के बंध एक के उदय में क्षायिक सम्यग्दृष्टि को इक्कीस प्रकृतिक और औपशमिक सम्यग्दृष्टि को अट्ठाईस तथा चौबीस प्रकृतिक सत्तास्थान होता है तथा अबंधक सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान में एक के उदय में क्षायिक सम्यग्दृष्टि के इक्कीस और औपशमिक सम्यग्दृष्टि के अट्ठाईस तथा चौबीस प्रकृतिक इस तरह दो सत्तास्थान होते हैं ।
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उपशांत मोहगुणस्थान में मोहनीयकर्म की किसी भी प्रकृति का बंध या उदय नहीं होता है, परन्तु क्षायिक सम्यग्दृष्टि के इक्कीस और औपशमिक सम्यग्दृष्टि के अट्ठाईस और चौबीस प्रकृतिक इस तरह तीन सत्तास्थान होते हैं ।
सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान में उपशम श्रेणि में उपर्युक्त तीन सत्तास्थानों के उपरान्त क्षपकश्रेणि का एक प्रकृत्यात्मक चौथा सत्तास्थान भी होता है ।
क्षपकश्रेणि पर आरूढ़ हुए के अनिवृत्तिबादरसं परायगुणस्थान में पाँच के बंध और दो के उदय में आठ कषाय का क्षय न किया हो वहाँ तक इक्कीस प्रकृति रूप सत्तास्थान होता है । आठ कषाय का क्षय करने के बाद तेरह प्रकृतिक तत्पश्वात् नपुंसकवेद का क्षय होने पर बारह प्रकृतिक और स्त्रीवेद का क्षय होने पर ग्यारह प्रकृतिक सत्तास्थान होता है ।
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