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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३६,३७
किट्टीकृत सूक्ष्म लोभ का सूक्ष्मसंपराय-गुणस्थानवर्ती नाश करता है-'नासेइ सुहुम तणुलोभ' ।
इस प्रकार से गुणस्थानापेक्षा जिस क्रम से मोहनीय की प्रकृतियों का क्षय होता है, उससे चौबीस आदि बारह सत्तास्थानों का विवेचन किया गया जानना चाहिये तथा शेष तीन सत्तास्थान किस तरह बनते हैं, इसका संकेत आगे किया जाने वाला है, तो भी भ्रम न हो जाये, इसलिये संक्षेप में उनका संकेत यहाँ करते हैं। ___मोहनीयकर्म की अट्ठाईस प्रकृतियां सत्ता में हों तब अट्ठाईस, सम्यक्त्वमोहनीय की उद्वलना हो तब सत्ताईस तथा मिश्रमोहनीय की उद्वलना हो तब छब्बीस अथवा अनादि मिथ्यादृष्टि के छब्बीस, अट्ठाईस में से अनन्तानुबंधिचतुष्क की विसंयोजना होने पर चौबीस, मिथ्यात्वमोहनीय का क्षय होने पर तेईस, मिश्र मोहनीय का क्षय होने पर बाईस और सम्यक्त्वमोहनीय का क्षय होने पर क्षायिक सम्यग्दृष्टि के इक्कीस प्रकृतियाँ सत्ता में होती हैं।
तत्पश्चात् क्षपकश्रेणि में मध्यम आठ कषायों का क्षय होने पर तेरह, नपुसकवेद का क्षय होने पर बारह, स्त्रीवेद का क्षय होने पर ग्यारह, हास्यषट्क का क्षय होने पर पांच, पुरुषवेद का क्षय होने पर चार, उसके बाद संज्वलन क्रोध का क्षय होने पर तीन, संज्वलन मान का क्षय होने पर दो, संज्वलन माया का क्षय होने पर एक संज्वलन लोभ सत्ता में होता है। ___ इस प्रकार मोहनीय कर्म के पन्द्रह सत्तास्थान होते हैं । प्रत्येक गुणस्थान के सत्तास्थान ___अब प्रत्येक गुणस्थान में संभव सत्तास्थानों का निरूपण करते
मिथ्यात्व गुणस्थान में अट्ठाईस, सत्ताईस और छब्बीस प्रकृतिक ये तीन सत्तास्थान होते हैं ।
सासादन गुणस्थान में एक अट्ठाईस प्रकृतिक सत्तास्थान होता
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