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________________ पंचसंग्रह : १० मिश्रदृष्टिगुणस्थान में अट्ठाईस, सत्ताईस, चौबीस प्रकृतिक ये तीन सत्तास्थान होते हैं । ७४ अविरतसम्यग्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत इन चार गुणस्थानों में पांच-पांच सत्तास्थान होते हैं । जो इस प्रकार हैं— अट्ठाईस, चौबीस, तेईस, बाईस, इक्कीस प्रकृतिक । अपूर्वकरण गुणस्थान में अट्ठाईस, चौबीस, इक्कीस प्रकृतिक ये तीन सत्तास्थान होते हैं । अनिवृत्तिबादरसंपरायगुणस्थान में ये ग्यारह सत्तास्थान होते हैं- अट्ठाईस, चौबीस, इक्कीस, तेरह, बारह, ग्यारह, पांच, चार, तीन, दो और एक प्रकृतिक । सूक्ष्मसंप रायगुणस्थान में अट्ठाईस, चौबीस, इक्कीस और एक प्रकृतिक ये चार सत्तास्थान होते हैं । उपशांतमोहगुणस्थान में अट्ठाईस, चौबीस, और इक्कीस प्रकृति वाले तीन सत्तास्थान होते हैं । इन समस्त सत्तास्थानों का विस्तार से विचार संवेध के प्रसंग में किया जा रहा है । यहाँ तो इनकी सूचना मात्र दी है । जिन छब्बीस आदि सत्तास्थानों का पूर्व में विचार नहीं किया गया है, उनको यहाँ बतलाते हैं छव्वीसणाइमिच्छे उव्वलणाए व सम्ममीसाणं । चवीस अणविजोए भावो भूओ विमिच्छाओ ॥ ३८ ॥ शब्दार्थ - छठवीस -- छब्बीस प्रकृतिक, णाइमिच्छे-अनादि मिथ्यादृष्टि को, उव्वलणाए — उवलना करने पर, ब - - और, सम्ममोसाणं - सम्यक्त्व और मिश्र मोहनीय को, चउवीस - चौबीस प्रकृतिक, अणविजोए - अनन्तानुबंधि की विसंयोजना करने पर, मावो- -सत्ता, भूओ वि- पुनः भी, मिच्छाओमिथ्यात्व के निमित्त से । गाथार्थ - अनादि मिथ्यादृष्टि के छब्बीस प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । सम्यक्त्व और मिश्रमोहनीय को उवलना होने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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