________________
७०
पंचसंग्रह : १०
प्रत्याख्यानावरणकषायचतुष्क का उदयविच्छेद देशविरतगुणस्थान में होता है।
उदयापेक्षा सम्यक्त्वमोहनीय का अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान से लेकर अप्रमत्तसंयतगुणस्थान पर्यन्त विकल्प से उदयविच्छेद होता है-कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं होता है। क्योंकि औपशमिक सम्यग्दृष्टि अथवा क्षायिक सम्यग्दृष्टि के उदय नहीं होता है, किन्तु क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि के उदय होता है।
हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा रूप हास्यषट्क का उदयविच्छेद अपूर्वकरण गुणस्थान में होता है तथा पुरुषवेदादि वेदत्रिक और संज्वलन क्रोध, मान, माया इन छह प्रकृतियों का उदयविच्छेद अनिवृत्तिबादरसंपरायगुणस्थान में तथा संज्वलन लोभ का उदयविच्छेद दसवें सूक्ष्म-संपराय गुणस्थान में होता है ।
जिस जिस गुणस्थान में जिन प्रकृतियों का उदयविच्छेद बताया है उसका यह आशय है कि उस-उस गुणस्थान तक तो उदय रहता है, किन्तु उसके बाद के गुणस्थानों में उदय नहीं रहता है।
इस प्रकार से मोहनीयकर्म के उदयस्थानों का कथन जानना चाहिये। अब मोहनीयकर्म के सत्तास्थानों का विचार करते हैं। मोहनीयकर्म के सत्तास्थान
अट्ठगसत्तगछक्कगचउतिगदुगएक्कगाहिया वीसा । तेरस बारेक्कारस संते पंचाइ जा एवकं ॥३॥ शब्दार्थ-अठ्ठग-आठ, सत्तग-सात, छक्कग-छह, चउतिगदुगएक्कगाहिया-चार, तीन, दो और एक अधिक, बीसा-बीस, तेरस-तेरह, बारेक्कारस-बारह, ग्यारह, संते-सत्तास्थान, पंचाइ-पांच आदि (पांच से लेकर), जा-तक, एक्क-एक ।
१ मोहनीयकर्म के उदयस्थानों सम्बन्धी समग्र कथन का प्रारूप परिशिष्ट
में देखिये।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org