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________________ ६८ पंचसंग्रह : १० तीन वेद और संज्वलनकषाय की पर्यन्तावलिका में उदीरणा नहीं होती है, केवल उदय ही होता है, तो भी उस पर्यन्तावलिका को छोड़कर शेष समय में उदय के साथ उदीरणा होती ही है, जिससे भंगों की संख्या में कोई अन्तर नहीं पड़ता है । अब इन उदयस्थानों और भंगों का काल प्रमाण बतलाते हैं एक के उदय से लेकर दस के उदय तक के सभी उदय उदयस्थान और उनके सभी भंग एक समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त कालमान वाले हैं । अर्थात् उन सभी उदयस्थानों और उनके सभी भंगों का जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल है । वे उदयस्थान या उन-उन उदयस्थानों के प्रत्येक भंग जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहते हैं । तत्पश्चात् वह उदयस्थान या भंग बदल जाता है । क्योंकि चार से लेकर दस तक के प्रत्येक उदयस्थान में कोई भी एक वेद और कोई भी एक युगल अवश्य होता है । उस वेद या युगल में से किसी भी वेद या युगल का अन्तमुहूर्त के बाद अवश्य परावर्तन होता है । कोई भी एक ही वेद या एक ही युगल अन्तर्मुहूर्त से अधिक काल उदय में नहीं रहता है । इसीलिये प्रत्येक उदयस्थान या उसके भंगों का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है । दो के और एक के उदय का अन्तर्मुहूर्त काल तो प्रसिद्ध है । क्योंकि दो का या एक का उदय नौवें गुणस्थान में और एक का उदय दसवें गुणस्थान में होता है और उन गुणस्थानों का काल ही अन्तर्मुहूर्त है तथा जघन्य से प्रत्येक उदयस्थान या भंग का काल एक समय है । प्रश्न - एक समय का काल किस प्रकार घटित होता है ? उत्तर - किसी भी विवक्षित एक उदयस्थान में या किसी भी एक भंग में एक समय रहकर दूसरे समय में अन्य गुणस्थान में जाये तब बंधस्थान के भेद से, गुणस्थान के भेद से या स्वरूपतः अन्य उदयस्थान में या अन्य भंग में जाता है । इसलिये सभी उदयस्थानों और भंगों का काल जघन्य से एक समय कहा है । उक्त कथन से यह फलितार्थ निकलता है कि एक से दूसरे गुण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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