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सप्ततिका प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३१, ३२, २३
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गुणा करके बादरसंपराय एवं सूक्ष्मसंपराय के सत्रह भंगों को मिलाने से सभी गुणस्थानों में मोहनीय के कुल उदयभंग बारह सौ पैंसठ होते हैं ।
उदय के जो-जो विकल्प होते हैं, वे सभी उदीरणा में भी होते हैं । ये सभी उदयविकल्प एक समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त प्रमाण काल वाले हैं ।
विशेषार्थ - सासादन एवं मिश्र गुणस्थान को छोड़कर मिथ्यादृष्टि से लेकर अप्रमत्तसंयतगुणस्थान पर्यन्त अर्थात् मिथ्यादृष्टि, अविरत - सम्यग्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत इन पांच गुणस्थानों में उदयविकल्पों की आठ-आठ नौबीसी होती हैं और सासादन, मिश्र एवं अपूर्वकरण इन तीन गुणस्थानों में से प्रत्येक में चार-चार चौबीसी होती हैं । इस प्रकार गुणस्थान के भेद से भेद करने पर कुल बावन चौबीसी होती हैं । इन बावन को चौबीस से गुणा करने पर (५२ × २४ = १२४८) बारह सौ अड़तालीस भंग होते हैं तथा इनमें नौवें, दसवें गुणस्थान के सत्रह भंगों को मिलाने पर सभी गुणस्थानों के मोहनीयकर्म के सभी उदयविकल्प ( १२४८+१७= १२६५) बारह सौ पैंसठ होते हैं । तथा
स्वरूपतः - सामान्य से, बंधस्थान के भेद से अथवा गुणस्थान के भेद से उदय के जो-जो विकल्प पूर्व में कहे गये हैं वे सभी उदीरणा में भी समझना चाहिये । क्योंकि उदय और उदीरणा सहभावी हैं । यद्यपि
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१ इन समस्त चौबोसियों का गाथा २६ के प्रसंग में विस्तृत विवेचन किया जा चुका है। इतना विशेष है कि वहां बंधस्थान के भेद से और यहां गुणस्थानापेक्षा चौबीसियों का भेद किया है ।
२ गाथा ३० के अनुसार पांच आदि के बंध में अनिवृत्तिबादरसंपराय गुणस्थान के दो के उदय में बारह और एक के उदय में चार कुल सोलह तथा बंध के अभाव में सूक्ष्मसंपराय का एक के उदय में एक इस प्रकार सत्रह भंग हैं ।
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