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________________ पंचसंग्रह : १० सारांश यह है कि बंधस्थान के भेद से भेद की विवक्षा न करने पर दो के उदय के बारह विकल्पों और संज्वलन चार कषाय के उदय के चार विकल्पों को पूर्वोक्त नौ सौ साठ विकल्पों में मिलाने पर सब नौ सौ छियत्तर उदयविकल्प होते हैं । अब मोहनीयकर्म के पूर्वोक्त उदयविकल्पों का गुणस्थानों में विचार करते हैं। गुणस्थानों में मोहनीयकर्म के उदय (उदोरणा) विकल्प मिच्छाइ अप्पमत्तंतयाण अठ्ठठ्ठ होंति उदयाणं । चउवीसाओ सासाण-मीसअपुव्वाण चउ चउरो ॥३१॥ चउवीसगुणा एए बायरसुहमाण सत्तरस अण्णे । सत्वेसुवि मोहुदया पण्णसट्ठा बारससयाओ ॥३२॥ उदयविगप्पा जे जे उदीरणाएवि होति ते ते उ। अंतमुहुत्तिय उदया समयादारब्भ भंगा य ॥३३॥ शब्दार्थ--मिच्छाइ-मिथ्यादृष्टि से लेकर, अप्पमत्तं तयाण-अप्रमत्तसंयत पर्यन्त, अट्ठट्ठ--आठ-आठ, होंति होती हैं, उदयाणं-उदय की, चउवीसाओ-चौबीसी, सासाण-सासादन, मीस-मिश्र, अपुव्वाण-अपूर्वकरण की, चउ चउरो-चार-चार । चउवीसगुणा-चौबीस से गुणा, एए--इनको, बायरसुहुमाण-बादरसंपराय और सूक्ष्मसंपराय, सत्तरस-सत्रह, अण्णे-अन्य, सम्वेसुवि-सभी, मोहुदया-मोहनीय के उदयविकल्प, पणसछा-सठ, बारससयाओ-बारह सौ। उदयविगप्पा-उदयविकल्प, जे-जे-जो जो, उदीरणाएवि-उदीरणा में भी, होति-होते हैं, ते ते उ-वे सभी, अंतमुहुत्तिय---अन्तर्मुहूर्त वाले, उदया-उदय, समयादारभ-समय से लेकर, भंगा-भंग, य-और। गाथार्थ-मिथ्यादृष्टि से लेकर अप्रमत्तसंयतगुणस्थान तक उदय की आठ-आठ चौबीसी और सासादन, मिश्र व अपूर्वकरण की चार-चार चौबीसी होती हैं। इनको चौबीस से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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