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________________ सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा २७ अपूर्वकरणगुणस्थान-यहाँ चार, पांच और छह प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान होते हैं । इस गुणस्थान में मात्र औपशमिक और क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव होते हैं । क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि नहीं होते हैं। जिससे सम्यक्त्वमोहनीय का उदय किसी भी जीव को नहीं होता है । अतएव अपूर्वकरण गुणस्थान युक्त क्षायिक सम्यग्दृष्टि या औपशमिक सम्यग्दृष्टि के संज्वलन क्रोधादि में से कोई एक क्रोधादि, तीन वेद में से एक वेद और युगलद्विक में से एक युगल, इस प्रकार चार-प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भंगों की एक चौबीसी होती है । इन चार प्रकृतियों में भय या जुगुप्सा के मिलाने पर पांच का. उदयस्थान होता है। यहां भंगों की दो चौबीसी होती हैं तथा भय और जुगुप्सा को युगपत् मिलाने से छह-प्रकृतिक उदयस्थान होता. है । यहां भी भंगों की एक चौबीसी होती है। कुल मिलाकर अपूर्वकरणगुणस्थान में चार चौबीसी (छियानवें भंग) होती हैं । यहाँ प्रमत्त गुणस्थान के उदय की अपेक्षा अप्रमत्त और अपूर्वकरण के उदय मात्र गुणस्थान के भेद से भिन्न हैं । परमार्थतः भिन्न नहीं हैं। क्योंकि सभी उदय और विकल्प एक समान हैं। इसलिये प्रमत्त के उदय के ग्रहण से ही अप्रमत्त और अपूर्वकरण के उदय भी ग्रहण किये हुए ही समझना चाहिये। इस कारण अप्रमत्त और अपूर्वकरण में मात्र गुणस्थान के भेद से होने वाली चौबीसियां प्रमत्त की चौबीसियों से पृथक् नहीं गिनी जायेंगी। ___ अब दस आदि उदयस्थानों में जितनी चौबीसियां होती हैं उनकी संख्या का निर्देश करते हैं। दस आदि स्थानों की चौबीसियां दसगाइसु चउवीसा एक्क छिक्कारदससग चउक्कं । एक्का य नवसयाइं सट्ठाइं एवमुदयाणं ॥२७॥ शब्दार्थ-दसगाइसु-दस-प्रकृतिक आदि उदयस्थानों में, चउवीसाचौबीसी, एक्क-एक, छिक्कारदससग--छह, ग्यारह, दस, सात, चउक्कं Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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