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पंचसंग्रह : १० मोहनीय में से किसी एक को मिलाने पर छह के उदय के तीन विकल्प होते हैं । प्रत्येक विकल्प में भंगों की एक-एक चौबीसी होने से तीन चौबीसी होती हैं। पूर्वोक्त पाँच के उदय में भय-जुगुप्सा अथवा भयसम्यक्त्वमोहनीय अथवा जुगुप्सा-सम्यक्त्वमोहनीय को मिलाने से सात का उदयस्थान होता है। यहाँ भी भंगों की तीन चौबीसी होती हैं । भय, जुगुप्सा और सम्यक्त्वमोहनीय इन तीनों को एक साथ मिलाने पर आठ का उदयस्थान होता है। यहाँ भंगों की एक ही चौबीसी होती हैं । कुल मिलाकर देशविरत गुणस्थान में भंगों की आठ चौबीसी (एक सौ वानवै १६२ भंग) होती है।
प्रमत्तसंयतगुणस्थान-यहाँ चार, पाँच, छह और सात प्रकृतिक ये चार उदयस्थान होते हैं। इनमें से औपशमिक और क्षायिक सम्यग्दष्टि के चार, पाँच और छह प्रकृतिक ये तीन तथा क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि के सम्यक्त्वमोहनीय का उदय अवश्य होने से पाँच, छह और सात प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान होते हैं। इनमें प्रमत्तसंयत औपशमिक सम्यग्दृष्टि अथवा क्षायिक सम्यग्दष्टि के संज्वलन क्रोधादि में से कोई भी क्रोधादि एक, तीन वेद में से एक वेद, युगलद्विक में से एक युगल इन चार प्रकृतियों का अवश्य उदय होता है। यहां भंगों की एक चौबीसी होती है। इन चार में भय अथवा जुगुप्सा अथवा सम्यक्त्वमोहनीय को मिलाने से पांच का उदयस्थान होता है । यहाँ प्रत्येक विकल्प में एक-एक चौबीसी होने से भंगों की तीन चौबीसी होती हैं तथा पूर्वोक्त चार में भय-जुगुप्सा अथवा भय-सम्यक्त्वमोहनीय अथवा जुगुप्सा-सम्यक्त्वमोहनीय को मिलाने पर छह का उदयस्थान होता है। यहां भी तीन विकल्प की तीन चौबीसी होती हैं तथा भय, जुगुप्सा और सम्यक्त्वमोहनीय को एक साथ मिलाने पर सात का उदयस्थान होता है और भंगों की एक चौबीसी होती है। कुल मिलाकर आठ चौबीसी (एक सौ बानवें भंग) होती हैं। __ अप्रमत्तसंयतगुणस्थान-यहाँ भी पूर्वोक्त प्रमत्तसंयतगुणस्थान की तरह चार आदि उदयस्थान और आठ चौबीसी जानना चाहिये ।
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