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सप्ततिका - प्ररूपणा अधिकार : गाथा २६
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भंगों की तीन चौबीसियाँ होती हैं । पूर्वोक्त छह में भय, जुगुप्सा अथवा भय, वेदक सम्यक्त्व अथवा जुगुप्सा, वेदक सम्यक्त्व को मिलाने पर आठ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी एक-एक विकल्प में भंगों की एक-एक चौबीसी होने से तीन चौबीसी होती हैं और भय, जुगुप्सा, वेदक सम्यक्त्व को एक साथ मिलाने से नौ का उदयस्थान होता है | यहाँ भंगों की एक चौबीसी होती है । अविरत - सम्यग्दृष्टिगुणस्थान में कुल मिलाकर आठ चौबीसी (१६२ भंग ) होती हैं ।
यहाँ यह ध्यान रखना चाहिये कि छह के उदय में सम्यक्त्वमोहनीय का उदय मिलाने से सात का उदयस्थान होता है, ऐसा नहीं है । क्योंकि छह का उदय औपशमिक या क्षायिक सम्यग्दृष्टि के होता है । उनके सम्यक्त्वमोहनीय का उदय नहीं होता है । तात्पर्य यह हुआ कि औपशमिक और क्षायिक सम्यग्दृष्टि के छह, सात, आठ प्रकृतिक, यह तीन उदयस्थान और क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि के सात, आठ, नौ प्रकृतिक यह तीन उदयस्थान होते हैं । क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि को सम्यक्त्वमोहनीय का उदय ध्रुव है। जिससे उसको प्रारम्भ से ही सात का उदयस्थान होता है ।
देशविरत गुणस्थान- यहाँ पाँच, छह, सात और आठ प्रकृतिक ये चार उदयस्थान होते हैं । इनमें से औपशमिक या क्षायिक सम्यग्दृष्टि देशविरत के पाँच, छह और सात प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान और क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी देशविरत को छह, सात और आठ प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान होते हैं ।
औपशमिक या क्षायिक सम्यग्दृष्टि देशविरत को पाँच प्रकृतिक उदयस्थान इस प्रकार हैं- प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन क्रोधादि में से दो क्रोध, तीन वेद में से एक वेद, युगलद्विक में से एक युगल । इन पाँच प्रकृतियों का देशविरतगुणस्थान में अवश्य उदय होता है । यहाँ भंगों की एक चौबीसी होती है । भय, जुगुप्सा अथवा सम्यक्त्व
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