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पंचसंग्रह : १० मिश्रगुणस्थान-यहाँ भी सात, आठ और नौ प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान होते हैं। उनमें से सात-प्रकृतिक उदयस्थान इस प्रकार है-इसमें और यहाँ से आगे किसी भी गुणस्थान में अनन्तानुबंधिकषाय का उदय नहीं होता है। अतः उसको छोड़कर शेष तीन कषाय, तीन वेद में से एक वेद, युगलद्विक में से एक युगल और मिश्रमोहनीय, इन सात प्रकृतियों का प्रत्येक मिश्रगुणस्थानवी जीव को अवश्य उदय होता है। इस उदयस्थान में पूर्वोक्त क्रमानुसार एक चौबीसी होती है। इसी सात में भय अथवा जुगुत्सा के उदय को बढ़ाने पर आठ-प्रकृतिक उदयस्थान दो प्रकार से होता है । जिससे भंगों की दो चौबीसी होती हैं । भय और जुगुप्सा को युगपत् मिलाने से नौ का उदयस्थान होता है और भंगों की एक चौबीसी होती है। कुल मिलाकर मिश्रगुणस्थान में चार चौबीसी (छियानवे भंग) होती हैं। ___ अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान--यहाँ छह, सात, आठ और नौ प्रकृतिक ये चार उदयस्थान होते हैं । क्षायिक, औपशमिक और क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि के भेद से तीन प्रकार के सम्यग्दृष्टि जीव होते हैं । उनमें से औपशमिक और क्षायिक सम्यग्दृष्टि के उदय में प्रकृतियाँ समान होती हैं और क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि के उदय में सम्यक्त्वमोहनीय प्रकृति अधिक होती है। यहाँ भंगों की कुल आठ चौबीसियाँ होती हैं। उनमें सम्यक्त्वमोहनीय वाली चार चौबीसी क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि की और उसके रहित की चार चौबीसी औपशमिक तथा क्षायिक सम्यग्दृष्टि की जानना चाहिये ।
__ औपशमिक और क्षायिक सम्यक्त्वी अविरतसम्यग्दृष्टि के छह प्रकृतियों का उदय इस प्रकार होता है-अप्रत्याख्यानावरणादि तीन क्रोध, तीन वेद में से एक वेद, युगलद्विक में से एक युगल । इन छह प्रकृतियों का चौथे गुणस्थान में अवश्य उदय होता है । यहाँ भंगों की एक चौबीसी होती है । इन छह प्रकृतियों में भय, जुगुप्सा या सम्यक्त्वमोहनीय में से किसी एक को मिलाने पर सात-प्रकृतिक उदयस्थान होता है । सात का उदयस्थान तीन प्रकार से होने के कारण
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