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पंचसंग्रह : ६
भव में मोक्ष जाने का संकेत किया है । जिसका विशेष स्पष्टीकरण इस प्रकार है
देव या नारक की आयु बाँधने के बाद क्षायिक सम्यक्त्व उत्पन्न करे तो देव या नारकों में जाकर मनुष्य हो मोक्ष में जाता है। उसने जिस भव में क्षायिक सम्यक्त्व उत्पन्न किया वह मनुष्य का भव, बाद में देव या नारक का भव और उसके बाद का मनुष्य भव इस तरह तीन भव होते हैं।
असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य तिर्यंच की आयु बांधने के बाद क्षायिक सम्यक्त्व उत्पन्न किया हो तो युगलिक में जाकर और वहाँ से देव में और फिर वहाँ से मनुष्य में जाकर मोक्ष में जाता है, उसे चार भव होते हैं । वे इस प्रकार-पहला मनुष्य का भव, दूसरा युगलिक भव, तीसरा देव और अन्तिम चौथा मनुष्य भव ।
जिसने परभव की आयु बाँधी ही नहीं है और क्षायिक सम्यक्त्व उत्पन्न करे तो वह चरम शरीरी कहलाता है । वह तो क्षायिक सम्यक्त्व उत्पन्न होने के बाद उसी समय चारित्रमोहनीय की क्षपणा प्रारम्भ करता है और उसी भव में मोक्ष जाता है। __ इस प्रकार दर्शनमोहनीय की क्षपणा का स्वरूप जानना चाहिए । अब चारित्रमोहनीय की उपशमना का स्वरूप कहते हैं और उसमें भी पहले उसके अधिकारी की योग्यता का निर्देश करते हैं। चारित्रमोहनीय की उपशमना का स्वामित्व
चारित्रमोहनीय की उपशमना का अधिकारी वैमानिक देव सम्बन्धी जिसने आयु बाँधी हो वैसा क्षायिक सम्यग्दृष्टि अथवा वैमानिक देव सम्बन्धी आयु बांधी हो या न बाँधी हो ऐसा वेदक सम्यग्दृष्टि है । जो वेदक सम्यक्त्व होते उपशम श्रेणि मांडता है--चारित्रमोहनीय की उपशमना के लिए प्रयत्न करता है वह कितने ही आचार्यों के मतानुसार प्रथम अनन्तानुबन्धि की विसंयोजना करके चौवोस प्रकृतिक
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