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________________ उपशमनादि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४४ ५६ समस्त दल नाश हो जाता है और उदयावलिका सम्यक्त्व में स्तिबुकसंक्रम द्वारा संक्रमित हो जाती है।। ___ सम्यक्त्वमोहनीय की आठ वर्ष प्रमाण स्थितिसत्ता वाला जीव उस समय उसके समस्त विघ्न नष्ट होने से निश्चयनय के मतानुसार दर्शनमोहनीय का क्षपक कहलाता है। विघ्नरूप सर्वघाति मिथ्यात्व और मिश्रमोहनीय का तो सर्वघात किया और सम्यक्त्वमोहनीय का अन्तमुहूर्त में घात करेगा। इसलिए वह निश्चयनय के मत से दर्शनमोहक्षपक कहलाता है तथा--. अंतमुहुत्तियखंडं तत्तो उक्किरइ उदयसमयाओ। निक्खिवइ असंखगुणं जा गुणसेढी परिहीणं ॥४४॥ शब्दार्थ-अंतमुहुत्तियखंड-अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थितिखंड, तत्तो-उसके बाद, उक्किरइ-उत्कीर्ण करता है, उदयसमयाओ-उदयसमय से, निक्खिवइ -स्थापित करता है, असखगुणं-असंख्यात गुणाकार, जा-पर्यन्त, गुणसेढीगुणश्रेणि, परिहीण-हीन-हीन ।। गाथार्थ-(सम्यक्त्वमोहनीय की सत्ता आठ वर्ष रहने के बाद), उसके अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थितिखंड करता है और उसके दलिकों को उत्कीर्ण करके उदयसमय से लेकर असंख्यात गुणाकार रूप से गुणश्रेणि शीर्ष पर्यन्त स्थापित करता है और उसके बाद हीनहीन स्थापित करता है। विशेषार्थ-जब से सम्यक्त्वमोहनीय को आठ वर्ष प्रमाण स्थिति सत्ता हुई, तब से उसके अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थितिखंड करके उसका घात करता है और उसके दलिकों को उदयसमय से लेकर इस प्रकार स्थापित करता है कि उदयसमय में अल्प, द्वितीय समय में असंख्यातगुण उसके बाद के समय में असख्यातगुण । इस प्रकार पूर्व-पूर्व स्थान से उत्तर-उत्तर स्थान असंख्यात-असंख्यात गुण गुणश्रेणि शीर्ष पर्यन्तगुणश्रेणि जितने स्थितिस्थानों में होती है उसके अन्तिम समय पर्यन्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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