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पंचसंग्रह :
है, उस समय सम्यक्त्वमोहनीय की आठ वर्ष की सत्ता वाला वह दर्शन मोहनीय का क्षपक कहलाता है ।
विशेषार्थ -- इस रीति से मिथ्यात्वमोहनीय की सत्तागत स्थिति के असंख्याता भाग करके एक भाग रख शेष सबका नाश करता है । इसी प्रकार जो स्थिति सत्ता में है, उसके असंख्याता भाग करके, एक भाग रख शेष सबका नाश करता है। इस क्रम से मिथ्यात्वमोहनीय का स्थितिघात करता हुआ बहुत से स्थितिघात होने के बाद उदयावलिका को छोड़कर शेष समस्त मिथ्यात्व की स्थिति का नाश करता है । उस समय मिश्र और सम्यक्त्वमोहनीय की पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितनी स्थितिसत्ता रहती है ।
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जिस-जिस स्थिति का घात होता है, उसके दलिकों की प्रक्षेप विधि इस प्रकार है
जिन-जिन स्थितियों का घात होता है, उनमें के मिथ्यात्व के दलिकों को मिश्र तथा सम्यक्त्वमोहनीय इन दोनों में निक्षिप्त करता है । मिश्रमोहनीय के सम्यक्त्वमोहनीय में निक्षिप्त करता है और सम्यक्त्वमोहनीय के नीचे उदयसमय से लेकर गुणश्रेणि के क्रम से स्थापित करता है। मिथ्यात्वमोहनीय की जो उदयावलिका शेष रही है, उसको स्तिबुकसंक्रम द्वारा सम्यक्त्वमोहनीय में निक्षिप्त करता है ।
मिथ्यात्वमोहनीय की जब से उदयावलिका शेष रही तब से मिश्र तथा सम्यक्त्वमोहनीय की सत्तागत स्थिति के असंख्याता भाग करता है और एक भाग बाकी रख शेष समस्त भागों का नाश करता है तथा जो सत्ता में है उसके असंख्याता भाग करके एक भाग रख शेष सबका नाश करता है । इस प्रकार से कितने ही स्थितिघात जाने के बाद मिश्रमोहनीय की एक उदयावलिका प्रमाण स्थितिसत्ता रहती है । उस समय सम्यक्त्वमोहनीय की आठ वर्ष प्रमाण स्थितिसत्ता रहती है । इस तरह उदयावलिका से ऊपर का मिश्रमोहनीय का
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