SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपशमनादि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४२. ४३ ५७ फिर जितनी स्थिति अवशिष्ट है उसके संख्याता भाग कर एक भाग रख शेष सभी भागों का नाश करता है । इस प्रकार हजारों स्थितिघात हो जाते हैं। जब से पल्योपम के संख्यातवें भाग जितनी सत्ता हुई तब से अभी तक तीनों दर्शनमोहनीय की सत्तागत स्थिति के संख्याता-संख्याता भाग कर एक-एक भाग रख अवशिष्ट स्थिति का नाश करता था और अब इसके बाद मिथ्यात्वमोहनीय की सत्ता में जो स्थिति है, उसके असंख्याता भाग कर एक रख शेष समस्त स्थिति का नाश करता है और मिश्र तथा सम्यक्त्वमोहनीय के तो संख्याता-संख्याता भाग कर एक भाग रख शेष सभी भागों का नाश करता है । तथा तत्तो बहखंडते खंडइ उदयावलीरहियमिच्छं । तत्तो असंखभागा सम्मामीसाण खंडेइ॥४२॥ बहुखंडते मीसं उदयावलिबाहिरं खिवइ सम्मे । अडवाससंतकम्मो दंसणमोहस्स सो खवगो ॥४३॥ शब्दार्थ-तत्तो-उसके बाद, बहुखंडते—बहुत से खंडों के अन्त में, खंडइ-नाश करता है, उदयावलीरहियमिच्छं-उदयावलिका से रहित मिथ्यात्व को, तत्तो— तत्पश्चात , असंखभागा-असंख्याता भाग, सम्मामीसाण ----सम्यक्त्व और मिश्र मोहनीय के, खंडेइ-नाश करता है। बहुखंडते बहुत से खंडों के अंत में, मोसं-मिश्रमोहनीय को, उदयावलिबाहिरं-उदयावलिका से ऊपर के, खिवइ-निक्षिप्त करता है, सम्मेसम्यक्त्व में, अडवाससंतकम्मो—मोहनीय कर्म की आठ वर्ष की सत्ता वाला, दसण मोहस्स-दर्शनमोहनीय का, सो-वह, खवगो-क्षपक। .. गाथार्थ--उसके बाद बहुत से खंडों के अन्त में उदयावलिका से रहित मिथ्यात्वमोहनीय का नाश करता है, उसके बाद मिश्र और सम्यक्त्वमोहनीय के असंख्याता भागों को खंडित करता है। तत्पश्चात् बहुत से खंडों के अन्त में उदयावलिका से ऊपर के मिश्रमोहनीय के दलिकों को सम्यक्त्वमोहनीय में निक्षेप करता.. w.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy