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________________ १६० पंचसंग्रह (8) के ऊपर प्रथम स्थिति से गुणश्रेणि शीर्ष तक असंख्यात गुणाकार रूप से और बाद में हीन-हीन स्थापित करता है एवं स्थितिघात आदि चढ़ते समय जैसे होते थे वैसे गिरते समय भी विपरीत क्रम से होते हैं अर्थात् चढ़ते समय क्रमशः स्थितिघात आदि जो अधिक-अधिक होते थे वे गिरते समय अल्प-अल्प प्रमाण में होते हैं और चढ़ते समय जिस-जिस स्थान में जिस-जि । प्रकृति का बंध, उदय, देशोपशम, निद्धत्ति और निकाचनाकरण का विच्छेद हुआ था उसी प्रकार से गिरते समय उस-उस स्थान में वे सब पुनः प्रारम्भ हो जाते हैं, परन्तु चढ़ते समय अन्तरकरण करने के बाद पुरुषवेद और चार संज्वलन का संक्रम जो क्रमशः ही होता था और लोभ के संक्रम का सर्वथा अभाव था एवं बध्यमान कर्म की जिस समय छह आवलिका के बाद उदीरणा होती थी उ के बदले गिरते समय पुरुषवेद और चार संज्वलन का परस्पर पांचों का पांच में संक्रम होता है, संज्वलन लोभ का भी संक्रम होता है और बध्यमान कर्मलता की बंधावलिका के बाद उदीरणा भी होती है एवं चढ़ते समय गुणश्रेणि की रचना के लिये प्रति समय ऊपर की स्थितियों में से असंख्यातगुण दलिक उतरते थे, उसके बदले गिरते समय प्रत्येक असंख्यातगुण हीन-हीन दलिक उतरते हैं और पूर्व की तरह स्थापित होते हैं । क्षपक श्रेणि में जिस-जिस स्थान पर जिस-जिस प्रकृति का जितना स्थितिबंध होता है उसकी अपेक्षा चढ़ते समय उपशम श्रेणि में उस-उस स्थान पर दुगुना और गिरते समय उस-उस स्थान में उससे भी दुगुना अर्थात् क्षपक श्रेणि से चौगुना स्थितिबंध होता है। क्षपक श्रेणि में जिस-जिस स्थान पर शुभ और अशुभ प्रकृतियों का जितना रसबंध होता है, उसकी अपेक्षा उपशम श्रेणि में चढ़ते समय क्रमशः अनन्तगुण हीन और अनन्तगुण अधिक और गिरते समय उससे भी शुभ का अनन्तगुण हीन और अशुभ का अनन्तगुण अधिक रसबंध होता है। __ श्रेणि पर से गिरता जीव मोहनीय-प्रकृतियों को गुणश्रेणि काल की अपेक्षा वेद्यमान संज्वलन के काल से अधिक काल वाली बनाता है और चढ़ने के काल की गुणश्रेणि की अपेक्षा तुल्य बनाता है। जिस कषाय के उदय से उपशम श्रेणि पर आरूढ़ हुआ था, गिरते समय जब उस कषाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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