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________________ १५६ पंचसंग्रह (९) तक प्रत्येक समय के अध्यवसायों में सूक्ष्म दृष्टि से असंख्यात प्रकार की तरतमता होने पर भी स्थूल दृष्टि से छह-छह प्रकार की तरतमता होती है, यह तिर्यग्मुखी विशुद्धि कहलाती है । पूर्व-पूर्व समय के अध्यवसायों की विशुद्धि की अपेक्षा उत्तरोत्तर समयों की विशुद्धि भी सामान्य से अनन्तगुण होती है, जिसे ऊर्ध्व मुखी विशुद्धि कहते हैं। . यथाप्रवृत्तकरण में पूर्व-पूर्व समय के अध्यवसायों से उत्तरउत्तर के समयों में समस्त अध्यवसाय नये नहीं होते हैं । इसी प्रकार पूर्वपूर्व समय के सभी अध्यवसाय उत्तर-उत्तर के समय में प्राप्त भी नहीं होते हैं। परन्तु पूर्व-पूर्व समय के अध्यवसायों में से प्रारम्भ के अल्प विशुद्धि वाले अल्प-अल्प अध्यवसाय छोड़ता है और जितने छोड़ता है, उससे कुछ अधिक संख्या प्रमाण नये-नये अध्यवसाय उत्तर-उत्तर के समय के होते हैं। जो इस प्रकार हैं प्रथम समय के जो एक सौ अध्यवसाय हैं, उनमें से एक से बीस तक के अध्यवसाय छोड़कर शेष प्रथम समय के जो इक्कीस से सौ तक के कुल अस्सी और पच्चीस उनसे अधिक विशुद्धि वाले नवीन—इस तरह कुल एक सौ पांच अध्यवसाय दूसरे समय में होते हैं। उनमें से प्रथम समय के इक्कीस से चालीस तक के बीस अध्यवसाय छोड़कर शेष प्रथम समय के साठ और पचास नये इस प्रकार एक सौ दस अध्यवसाय तीसरे समय में होते हैं। उनमें से प्रथम समय के इकतालीस से साठ तक के बीस अध्यवसाय छोड़कर शेष प्रथम समय के चालीस और पचहत्तर नये इस तरह कुल एक सो पन्द्रह अध्यवसाय चौथे समय में होते हैं और उनमें से भी प्रथम समय के इकसठ से अस्सी तक के बीस अध्यवसाय छोड़कर शेष प्रथम समय के इक्यासी से सौ तक के बीस अध्यवसाय और एक सौ नये, इस तरह कुल एक सौ बीस अध्यवसाय पांचवें समय में होते हैं। ___ अर्थात् पच्चीस समयात्मक यथाप्रवृत्तकरण के पांच-पांच समय प्रमाण पांच भाग करें। तो प्रथम समय के अध्यवसाय पाँच समय स्वरूप यथाप्रवृत्तकरण के प्रथम संख्यातवें भाग के चरम समय रूप पांचवें समय तक होते हैं। दूसरे समय के छठे समय तक, तीसरे समय के सातवें समय तक, चौथे के आठवें समय तक, पांचवें के नौवें समय तक, छठे के दसवें समय तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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