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________________ उपशमनादि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६४ १२७ पूरुषवेद के उदय में श्रेणि आरम्भ करने वाले के समान समझना चाहिए। स्त्रीवेद या पुरुषवेद के उदय में श्रेणि स्वीकार करने वाला जिस स्थान में नपुसकवेद को उपशमित करता है, उस स्थान पर्यन्त नपुसकवेद के उदय में श्रेणि मांड़ने वाला नपुसकवेद को ही उपशमित करने की क्रिया करता है। उसके बाद नपुसकवेद और स्त्रीवेद इन दोनों को एक साथ उपशमित करता है। इस प्रकार नपुसकवेदोदय के द्विचरमसमयपर्यन्त दोनों को उपशमित करता है। उस द्विचरम समय में स्त्रीवेद सर्वथा उपशमित हो जाता है और नपुसकवेद की एक उदयस्थिति शेष रहती है। वह एक उदयस्थिति भी भोगी जाने के पश्चात् हास्यषट्क और पुरुषवेद इन सात को एक साथ उपशमित करना प्रारम्भ करता है और इसके बाद का क्रम पुरुषवेद के उदय में श्रेणि आरम्भ करने वाले के समान समझना चाहिये 11 इस प्रकार से मोहनीयकर्म के सर्वोपशम का स्वरूप जानना चाहिये। अब देशोपशमना का प्रतिपादन करते हैं। १. पुरुषवेद का बंधविच्छेद कहाँ होता है और बंधविच्छेद होने के बाद जैसे समयोन दो आवलिका में बंधा हुआ अनुपशांत रहता है, वह यहाँ रहता है या नहीं, यह नहीं कहा है। परन्तु शेष कथन पुरुषवेद के उद। में श्रेणि आरम्भ करने वाले की तरह समझना चाहिये, कहा है। इससे ऐसा ज्ञात होता है कि पुरुषवेद के उदय में श्रोणि आरम्भ करने वाले के जहाँ उसका बंधविच्छेद होता है, वहीं स्त्रीवेद या नपुसकवेद के उदय में श्रेणि आरम्भ करने वाले के भी पुरुषवेद का बंधविच्छेद होता है और बंधविच्छेद के समय समयोन दो आवलिका में बंधा हुआ जो अनुपशांत रहता है, उसे उतने ही समय में उपशमित करता है । २ क्रोधादि कषायोदय और अन्यतर वेदोदय में श्रेणि प्रारम्भक का विवरण परिशिष्ट में देखिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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