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________________ १२६ पंचसंग्रह : ६ है। अब स्त्रोवेद और नपुसकवेद से उपशमणि प्राप्त करने वाले की अपेक्षा विधि प्रक्रिया बतलाते हैं । स्त्री-नपुंसकवेदापेक्षा उपशमणि विधि दुचरिमसमये नियगोदयस्स इत्थीनपूसगोण्णोण्णं । समयित्तु सत्त पच्छा किन्तु नपुंसो कमारी ॥६४।। शब्दार्थ-दुचरिमसमये-द्विचरम समय में, नियगोदयस्स-अपने उदय के, इत्थीनपुसगो-स्त्री और नपुसक वेद, पणोण्ण-अन्योन्य-एक दूसरे को, समयित्तु-उपशम करके, सत्त-सात प्रकृतियों को, पच्छा-पश्चात्, किन्तु-लकिन, नपुंसो--नपुसकवेद, कमारद्ध-क्रम प्रारम्भ करने पर। गाथार्थ-स्त्री और नपुसक अपने उदय के द्विचरम समय में अन्योन्य वेद को उपशमित करता है, तत्पश्चात् सात प्रकृतियों को उपशमित करता है परन्तु नपुसकवेद से श्रेणि क्रम आरम्भ करने पर पहले नपुसकवेद को और कुछ समय बाद स्त्रोवेद को उपशमित करना प्रारम्भ करता है। विशेषार्थ-अभी तक यह बताया है कि पुरुषवेद के उदय में श्रेणि आरम्भ करने वाला किस क्रम से चारित्रमोहनीय की प्रकृतियों को उपशमित करता है। अब स्त्री या नपु सकवेद के उदय में श्रेणि आरम्भ करने वाला किस क्रम से उपमित करता है, यह स्पष्ट करते हैं___ जब स्त्रीवेद के उदय में कोई उपशमणि प्राप्त करता है तब पहले नपुसकवेद को उपशमित करता है। उसके बाद स्त्रीवेद अपने उदय के द्विचरम समय पर्यन्त उपशमित करता है। अपने उदय के द्विचरम समय में अन्तिम एक उदयसमय को छोड़कर स्त्रीवेद का समस्त दलिक शांत हो जाता है । उस एक अंतिम उदयस्थिति को भोग लेने के बाद अवेदक होकर हास्यषट्क और पुरुषवेद इन सातों प्रकृ. तियों को एक साथ उपशमित करना प्रारम्भ करता है और शेष कथन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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