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________________ उपशमनादि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६३ १२५ ही चढ़ता है, परभवायु बांधे बिना भी उपशमश्रेणि पर चढ़ सकता है, वह अन्तरकरण पूर्ण होने के बाद आयु बांध सकता है । तथा एक भव में अधिक-से-अधिक दो बार ही चारित्रमोहनीयकर्म को सर्वथा उपमित करता है। जो जीव एक भव में दो बार उपशमश्रेणि मांड़ता है, वह उस भव में क्षपकश्रेणि नहीं मांड़ सकता है, चारित्रमोहनीय की क्षपणा नहीं कर सकता है। परन्तु जिसने एक जन्म में एक बार चारित्रमोहनीय की उपशमना की हो, उसको उस भव में क्षपकणि हो भी सकती है-कदाचित् चारित्रमोहनीय की क्षपणा हो भी सकती है। परन्तु इससे यह आशय ग्रहण नहीं करना चाहिये कि चारित्रमोहनीय की क्षपणा करने से पहले चारित्रमोहनीय की उपशमना जरूरी है। चारित्रमोहनीय की उपशमना किये बिना भी चारित्रमोहनीय की क्षपणा कर सकता है तथा एक जन्म में उपशम और क्षपक इस तरह दोनों श्रेणियां चढ़ सकता है। यह कार्मग्रन्थिक अभिप्राय है। किन्तु आगमिक अभिप्रायानुसार तो एक भव में उपशम और क्षपक इन दोनों में से एक ही श्रोणि पर चढ़ सकता है । कहा भी है अन्नयरसेढिवज्ज एगभवेणं च सव्वाइं । दोनों में से एक श्रेणि के सिवाय एक भव में देशविरति, सर्वविरति चारित्र आदि सभी प्राप्त कर सकते हैं। तथा 'मोहोपशम एकस्मिन् भवे द्विः स्यादसन्ततः । यस्मिन्भवे तूपशमः क्षयोमोहस्य तत्र न ॥' एक भव में मोह का उपशम दो बार हो सकता है। परन्तु जिस भव में मोह का सर्वोपशम हुआ हो उस भव में मोह का सर्वथा क्षय नहीं होता है। इस प्रकार पुरुषवेद से श्रोणि प्राप्त करने वाले की अपेक्षा विधि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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