SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४ पंचसंग्रह : ६ गाथार्थ-उपशमसम्यक्त्व के काल में आयु क्षय होने पर अवश्य देव होता है। किन्तु जिसने तीन आयु में से किसी एक आयु को बांधा हो वह श्रेणि पर आरोहण नहीं करता है । विशेषार्थ-उपशमसम्यक्त्व के काल में रहते जो कोई आयु पूर्ण हो जाने से काल करे तो अवश्य देव होता है । क्योंकि नारक, तिर्यंच और मनुष्य सम्बन्धी आयु का बंध किया हो तो उपशमश्रेणि पर चढ़ नहीं सकता है, परन्तु वैमानिक देव सम्बन्धी आयु बांधी हो तभी उपशमश्रोणि पर चढ़ सकता है तथा उपशमसम्यक्त्व के काल में मरण को प्राप्त हो तो देव ही होता है । तथा सेढिपडिओ तम्हा छडावलि सासणो वि देवेसु । एगभवे दुक्खुत्तो चरित्तमोहं उवसमेज्जा ।।६३॥ शब्दार्थ-सेढिपडिओ-श्रोणि से पतित, तम्हा—उस कारण से, छडावलि-छह आवलिका, सासणो-सासादनगुणस्थान वाला, वि-भी, देवेसुदेव में, एगभवे-एक भव से, दुक्खुत्तो-दो बार, चरित्तमोहं-चारित्रमोह को, उवसमेज्जा-उपशमित कर सकता है। गाथार्थ-उस कारण से श्रेणि से पतित जिसका छह आवलिका काल है वह सासादनगुणस्थान वाला भी मरण कर देव हो 'सकता है। एक भव में दो बार चारित्रमोह को सर्वथा उपशमित कर सकता है। विशेषार्थ-देवायु को छोड़कर शेष तीन आयु में से किसी भी आयु को बांधने के बाद उपशमणि पर चढ़ नहीं सकता है, इसलिए श्रेणि से गिरकर उत्कृष्ट छह आवलिका और जघन्य एक समय जितना जिसका काल है, उस सासादनगुणस्थान में भी काल करे तो मरकर अवश्य देव होता है । तात्पर्य यह है कि आयु के बांधने के बाद यदि उपशमश्रोणि पर चढ़े तो वैमानिक देव की आयु बांधने के बाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy