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पंचसंग्रह : 8
संकमउदीरणाणं नत्थि विसेसो उ एत्थ पुव्वुत्तो। जं जत्थ उ विच्छिन्नं जायं वा होइ तं तत्थ ॥८॥
शब्दार्थ-संकमउदीरणाणं-संक्रम और उदीरणा के, नस्थि-नहीं है, विसेसो--विशेष, उ-किन्तु, एत्थ-यहाँ, पुवुत्तो--पूर्व में कहे, जंजिसका, जत्थ ---जहाँ, उ-ही, विच्छिन्नं-- विच्छेद, जायं-हुआ था, वा--- तथा, होइ-होता है, तं-वह, तत्थ-वहाँ ।
__ गाथार्थ-पूर्व में कहे गये संक्रम और उदीरणा के सम्बन्ध में यहाँ विशेष नहीं है । जिसका जहाँ विच्छेद हुआ था तथा जो जहाँ होता था वहाँ वह होता है। विशेषार्थ-उपशमश्रेणि पर चढ़ते संक्रम और उदीरणा के सम्बन्ध में जो विशेष कहा था, कि क्रमपूर्वक संक्रम होता है किन्तु अनानुपूर्वी से-उत्क्रम से संक्रम नहीं होता है, तथा अन्तरकरण के द्वितीयसमय से बंधे हुए कर्म की छह आवलिका जाने के बाद उदी. रणा होती है, छह आवलिका में नहीं होती है ऐसा उदीरणा के सम्बन्ध में विशेष कहा था, वह विशेष उपशमनं णि से गिरते नहीं रहता है । उपशम श्रेणी से गिरते तो क्रमउत्क्रम दोनों प्रकार से संक्रम होता है, तथा बंधे हुए कर्म की बंधावलिका पूर्ण होने के बाद भी उदीरणा होती है तथा श्रीणि पर चढ़ते बंधन, संक्रमण, अपवर्तना, उद्वर्तना, उदीरणा, देशोपशमना, निधत्ति, निकाचना और आगाल का जिस समय विच्छेद हुआ था, गिरते उस समय के प्राप्त होने पर वे सब होते हैं तथा चढ़ते समय जिस स्थान पर स्थितिघात, रसघात आदि होते थे, गिरते समय वे उसी प्रकार विपरीत क्रम से होते हैं । तथा
वेइज्जमाण संजलण कालाओ अहिगमोहगुणसेढी । पडिवत्तिकसाउदए तुल्ला सेसेहि कम्मेहिं ॥८६॥ शब्दार्थ-वेइज्जमाण-वेद्यमान, संजलण-संज्वलन, कालाओ
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