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________________ ११७ उपशमनादि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ८५ उपशांतमोहगुणस्थान से प्रतिपतन दो प्रकार से होता है१ भवक्षय और २ अद्धाक्षय-गुणस्थान का काल पूर्ण होने से । भवक्षय से प्रतिपात मरने वाले का होता है। यदि उपशांतमोहगुणस्थान में किसी की आयु पूर्ण होती है तो वह मरकर सर्वार्थसिद्ध महाविमान में उत्पन्न होता है। मनुष्यायु के चरमसमयपर्यन्त ग्यारहवां गुणस्थान होता है, परन्तु देवायु के प्रथमसमय से ही चतुर्थ गुणस्थान प्राप्त होता है और उसे प्रथमसमय से ही एक साथ सभी करण प्रवर्तित होते हैं। उदीरणाकरण से जो दलिक खींचता है, उन्हें उदयावलिका में क्रमबद्ध स्थापित करता है। जिन दलिकों की उदीरणा नहीं करता परन्तु अपवर्तनाकरण से नीचे उतारता है, उनको उदयावलिका के बाहर गोपुच्छाकार से स्थापित करता है और जो अन्तरकरण था यानि शुद्ध भूमिका थी, उसे दलिकों से भर देता है और उन दलिकों का वेदन करता है। किन्तु जो उपशांतमोहगुणस्थान का अन्तर्मुहूर्त काल पूर्ण कर पतन करता है, वह जिस क्रम से स्थितिघातादि करता हुआ चढ़ता था, उसी क्रम से पश्चानुपूर्वी से स्थितिघातादि करता प्रमत्तसंयतगुणस्थान तक गिरता है। यहाँ जो स्थितिघात आदि बतलाया है उसका आशय यह कि जैसे गुणस्थान पर प्रवर्धमान परिणाम की अत्यन्त विशुद्धि होने से अधिकअधिक प्रमाण में स्थिति और रस का घात करता था, अधिक-अधिक दलिक उतार कर उदयसमय से लेकर अधिक-अधिक यथाक्रम स्थापित करता था और नवीन स्थितिबंध हीन-हीन करता जाता था। किन्तु अब गिरते समय परिणामों की मन्दता होने से अल्प प्रमाण में स्थिति और रस का घात करता है, स्थितिबंध बढ़ाता जाता है और गुणश्रेणि विलोम करता है। अर्थात् निषेकरचना के अनुसार दलरचना करता है, जिससे उदयसमय में अधिक, उसके बाद अल्प-अल्प, इस प्रकार दलरचना करता है। जिसकी विधि इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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