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पंचसंग्रह : ६
आरम्भ करने वाला जिस प्रकार से क्रोध को उपशमित करता है, उसी प्रकार से तीन लोभ को शांत करता है ।
यहाँ यह विशेष ज्ञातव्य है कि मान के उदय में श्रेणि आरम्भ करने वाले के संज्वलनक्रोध का बंधविच्छेद कहां होता है, यह नहीं बताया है, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि क्रोध के उदय में श्रेणि आरम्भ करने वाले के जहां क्रोध का बंधविच्छेद होता है, वहीं मान के उदय में श्रेणि आरम्भ करने वाले को भी क्रोध का बंधविच्छेद होता है और क्रोध के उदय में श्र ेणि आरम्भ करने वाले को जैसे उसका बंधविच्छेद होने के बाद दो समयन्यून दो आवलिका में बंधा हुआ अनुपशमित शेष रहता है, वैसे ही मान के उदय में श्रेणि आरम्भ करने वाले के भी क्रोध का बंधविच्छेद होने के बाद दो समयन्यून आवलिका काल का बंधा हुआ अनुपशांत रहता है और उसे उतने ही काल में मान को भोगता हुआ उपशमित करता है । इसी प्रकार माया के उदय में श्र ेणि आरम्भ करने वाले को क्रोध और मान के उदय के लिये समझना चाहिये । यानि माया के उदय में श्रेणि मांड़ने वाले के संज्वलन क्रोध का बंधविच्छेद होने बाद जो समयन्यून दो आवलिका काल का बंधा हुआ अनुपशांत है उसे उतने ही काल में मान को उपशांत करते हुए साथ ही उपशमित करता है और मान का बंधविच्छेद होने के बाद जो दो समयन्यून दो आवलिका काल का बधा हुआ मान का दलिक अनुपशांत है, उसे उतने ही काल में माया को वेदन करते हुए उपशमित करता है । इसी प्रकार लोभ के उदय में श्रेणि आरम्भ करने वाला क्रोध के अवशिष्ट को मान के साथ, मान के अवशिष्ट को माया के साथ उपशमित करता है और माया के अवशिष्ट को लोभ का वेदन करने के साथ उपशमित करता है । विद्वानों से विशेष स्पष्टीकरण की अपेक्षा है ।
मोहनीय शांत किया हुआ होने से इस गुणस्थान से आगे नहीं बढ़ा जाता है, किन्तु यहाँ अन्तर्मुहूर्त रहकर अवश्य पतन होता है । पतन का क्रम इस प्रकार है
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