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________________ १०६ पंचसंग्रह : ६ किट्टि भी नीचे के समय की जघन्य रस वाली किटि के अनन्तवें भाग प्रमाण है। विशेषार्थ-जैसे पूर्व गाथा में एक समय की गई किट्टियों में दलिकों का प्रमाण बताया है, वैसे ही इस गाथा में रस का प्रमाण बतलाते हैं पहले समय में की गई किट्टियों में अत्यन्त मन्द रस वाली जो किट्टि है, वह दूसरी किट्टि की अपेक्षा अत्यन्त हीन रस वाली है। उससे दूसरी किट्टि अनन्तगुण रस वाली, उससे तीसरी किट्टि अनन्तगुण रस वाली है। इस प्रकार प्रथम समय में की गई किट्टियों में उत्तरोत्तर अनन्तगुण सर्वोत्कृष्ट रस वाली किट्टि पर्यन्त जानना चाहिये । इसको पहले समय में जो किट्टियां होती हैं, उनको क्रम से स्थापित करने पर स्पष्ट समझा जा सकता है। जघन्य रस वाली को पहले और चढ़ते-चढ़ते रस वाली को उत्तरोत्तर स्थापित करना चाहिये। इसी प्रकार से द्वितीय आदि समयों में की गई किट्टियों के सम्बन्ध में भी प्ररूपणा करना चाहिए। किट्टियों के रस और प्रदेश का अल्पबहुत्व अब पूर्व-पूर्व समय की जघन्य रस वाली किट्टि और उत्तर-उत्तर के समय की उत्कृष्ट रस वाली किट्टि के रस और प्रदेशों के अल्पबहुत्व का निर्देश करते हैं । रसविषयक अल्पबहुत्व इस प्रकार है पहले समय में की गई किट्टियों में जो अत्यन्त अल्परस वाली है वह उत्तर में कही जाने वाली की अपेक्षा अधिक रस वाली है, उससे द्वितीय समय में की गई किट्टियों में जो उत्कृष्ट रस वाली किट्टि है, वह अनन्तगुणहीन रस वाली किट्टि है तथा दूसरे समय में की गई किट्टियों में जो अत्यन्त अल्परस वाली किट्टि है, उसकी अपेक्षा तीसरे समय में की गई किट्टियों में जो सर्वोत्कृष्ट रस वाली किट्टि है, वह अनन्तगुणहीन रस वाली किट्टि है । इस प्रकार पूर्व-पूर्व समय की अल्प रस वाली किट्टि की अपेक्षा ही उत्तर उत्तर के समय की उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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