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उपशमनादि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६१
थीअपुमोदयकाला संखेज्जगुणा उ पुरिसवेयस्स । तस्सवि विसेसअहिओ कोहे तत्तोवि जहकमसो ॥६१॥
शब्दार्थ-योअपुमोदयकाला--स्त्रीवेद, नपुसक वेद के काल से, संखेज्जगुणा-संख्यातगुणा, उ-और, पुरिसवेयस्स-पुरुषवेद का, तस्सवि---- उससे भी, विसेसअहियो--विशेषाधिक, कोहे-क्रोध का, तत्तोवि-उससे भी, जहकमसो----अनुक्रम से मान आदि का।
___ गाथार्थ-स्त्रीवेद और नपुसकवेद के उदयकाल से पुरुषवेद का उदय काल संख्यातगुणा है, उससे क्रोध का और उससे भी मान आदि तीन का अनुक्रम से विशेषाधिकविशेषाधिक है।
विशेषार्थ-स्त्रीवेद और नपुसकवेद का उदयकाल पुरुषवेद के उदयकाल की अपेक्षा अल्प है, किन्तु स्वस्थान में परस्पर तुल्य है, उससे पुरुषवेद का उदयकाल संख्यातगुणा है । उस पुरुषवेद के उदयकाल से संज्वलन क्रोध का उदय काल विशेषाधिक है, उससे अनुक्रम से मान, माया और लोभ का उदयकाल विशेषाधिक-विशेषाधिक है।
प्रश्न-संज्वलन क्रोधादि का उदय कहाँ तक होता है ?
उत्तर-संज्वलनक्रोध के उदय में उपशमश्रेणि स्वीकार करने वाले को जब तक जहाँ तक अप्रत्याख्यानावरण-प्रत्याख्यानावरण क्रोध का उपशम नहीं होता है, तब तक संज्वलनक्रोध का उदय होता है। संज्वलनमान के उदय में श्रेणिआरम्भ करने वाले के जब तक अप्रत्याख्यानावरण-प्रत्याख्यानावरण मान का उपशम नहीं हुआ होता है, तब तक संज्वलनमान का उदय होता है । संज्वलनमाया के उदय से श्रेणि आरंभक के, जब तक अप्रत्याख्यानावरणप्रेत्याख्यानावरण माया शांत न हो गई हो, तब तक संज्वलन माया का उदय होता है और संज्वलन लोभ के उदय में श्रेणि-आरंभक के जब तक अप्रत्याख्यानावरण-प्रत्याख्यानावरण लोभ का उपशम न हो तब तक बादर संज्वलन लोभ का उदय होता है। बादर लोभ को
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