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पंचसंग्रह : S
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रस होने के बाद हजारों स्थितिबन्ध व्यतीत होने के अनन्तर लाभान्तराय, अवधिज्ञानावरण, अवधिदर्शनावरण का देशघाति रस बांधता है तत्पश्चात् संख्याता हजार स्थितिबन्ध व्यतीत होने के बाद भोगान्त - राय, अचक्षुदर्शनावरण और श्रुतज्ञानावरण का देशघाति रसबन्ध करता है । उसके बाद संख्याता हजार स्थितिबन्ध होने के अनन्तर चक्षुदर्शनावरण का देशघाति रसबन्ध करता है । उसके बाद हजारों बन्ध होने के अनन्तर उपभोगान्तराय और मतिज्ञानावरण का देशघाति रसबन्ध करता है, तत्पश्चात् हजारों स्थितिबन्ध व्यतीत हो जाने के अनन्तर वीर्यान्तराय का देशघाति रसबन्ध करता है । किन्तु क्षपकश्रेणि या उपशमश्र णि में से किसी भी श्रेणि पर आरूढ़ नहीं हुए जीव उपर्युक्त सभी प्रकृतियों का रस सर्वघाति ही बांधते हैं । तथासंजमघाईण तओ अंतरमुदओ उ जाण दोण्हं तु । वेयकसायण्णयरे सोदयतुल्ला उ पढमट्ठिई ॥ ६० ॥ शब्दार्थ-संजमघाईण- संयम घाति प्रकृतियों का, तओ— तत्पश्चात्, अंतर- अन्तरकरण, उदओ – उदय, उ— और, जाण— जिसका, दोन्हं तु और दोनों, वेयक सायण्णयरे - वेद और कषाय में से अन्यतर का, सोदयतुल्ला - स्वोदय तुल्य, उ — और, पढमट्ठिई – प्रथम स्थिति ।
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गाथार्थ -- तत्पश्चात् संयमघाति प्रकृतियों का अन्तरकरण होता है | वेद और कषाय इन दोनों में से जिसका उदय हो उनकी प्रथम स्थिति स्वोदय तुल्य है ।
विशेषार्थ - वीर्यान्तराय कर्म का देशघाति रस होने के बाद संख्यात हजारों स्थितिबन्ध होने के अनन्तर चारित्र का घात करने वाली अनन्तानुबन्धि कषायों को छोड़कर शेष बारह कषाय और नवनोकषाय इन इक्कीस प्रकृतियों का अन्तरकरण करता है । उसमें संज्वलन की चार कषायों में से किसी एक का और तीन वेद में से किसी एक का इस तरह दो प्रकृतियों का उदय होता है, जिससे उन दो प्रकृतियों की प्रथम स्थिति अपने उदय काल जितनी करता है । यानि
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