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उदीरणाकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३० उदीरणा होती है, अतएव अन्तर्मुहूर्तन्यून उत्कृष्ट स्थिति उदीरणायोग्य होती है । तथा
मनुष्यगति, सातावेदनीय, स्थिरषट्क, हास्यषट्क, तीन वेद, शुभ विहायोगति आदि, संहननपंचक आदि, संस्थानपंचक और उच्चगोत्र रूप उनतीस उदयसंक्रमोत्कृष्टा प्रकृतियों की तीन आवलिका बंधावलिका, संक्रमावलिका और उदयावलिका न्यून उत्कृष्ट स्थिति उदीरणायोग्य समझना चाहिए । मनुष्यगति आदि में उत्कृष्ट से कितनी स्थिति संक्रमित होती है, सक्रमित होने के बाद उनकी कितनी स्थिति की सत्ता होती है और उसमें से कितनी उदीरित की जाती है, यह सब लक्ष्य में रखकर उत्कृष्ट स्थिति की उदीरणा कहने योग्य है । जैसे कि
नरकगति की बंधावलिका के जाने के बाद ऊपर की उदयावलिका, इस तरह दो आवलिकान्यून उत्कृष्ट स्थिति संक्रमित होती है और जिसमें संक्रमित होती है, उसकी उदयावलिका से ऊपर ही संक्रमित होती है । इसका कारण यह है कि जिसकी स्थिति संक्रमित होती है उसकी उदयावलिका से ऊपर की स्थिति संक्रमित होती है और जिसमें संक्रमित होती है उसकी उदयावलिका को मिलाने पर एक आवलिकान्यून उत्कृष्ट स्थिति की सत्ता होती है। संक्रमावलिका के जाने के बाद उदयावलिका से ऊपर की स्थिति की उदीरणा होती है, जिससे ऊपर कहे अनुसार तीन आवलिकान्यून उत्कृष्ट स्थिति उदीरणायोग्य होती है।
यहाँ प्रत्येक स्थान पर दो या तीन आवलिका अथवा अन्तमुहूर्त जितना काल उदीरणा के अयोग्य कहा है, अत: उतना अद्धाच्छेद
और जिस-जिस प्रकृति का जिसको उदय हो, उस जीव को उस-उस प्रकृति की उत्कृष्ट स्थिति की उदीरणा का स्वामी समझना चाहिए। तथा
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