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उदीरणाकरण-प्ररूपणा अधिकार : गाथा २६ प्रकृतिविषयक और उत्तर प्रकृतिविषयक इस तरह दो प्रकार को है। उसमें से पहले मूल प्रकृति-सम्बन्धी साद्यादि प्ररूपणा करते हैं। मूल प्रकृति सम्बन्धी साद्यादि प्ररूपणा
वेयणियाऊण दुहा चउव्विहा मोहणीय अजहन्ना । पंचण्ह साइवज्जा सेसा सव्वेसु दुविगप्पा ॥२६॥
शब्दार्थ-वेयणियाऊण वेदनीय और आयु की, दुहा–दो प्रकार, चउविहा–चार प्रकार, मोहणीय –मोहनीय की, अजहन्ना-अजघन्य, पंचण्ह -पांच की, साइवज्जा-सादि को छोड़कर, सेसा-शेष, सव्वेसु-सब कर्मों में, दुविगप्पा-दो प्रकार ।
गाथार्थ वेदनीय और आयु की अजघन्य उदीरणा के दो प्रकार, मोहनीय के चार प्रकार और शेष पांच कर्म के सादि के बिना तीन प्रकार हैं । सब कर्मों में शेष विकल्प के दो प्रकार हैं। विशेषार्थ- वेदनीय और आयु की अजघन्य स्थिति-उदीरणा सादि और अध्र व-सांत इस प्रकार दो तरह की है । वह इस प्रकार-वेदनीय की जघन्य स्थिति की उदीरणा अति अल्पस्थिति की सत्ता वाले एकेन्द्रिय को होती है। समयान्तर-कालान्तर में बढ़ती सत्ता वाले उसी के अजघन्य स्थिति की उदीरणा होती है तथा जघन्य स्थिति की सत्ता वाला हो तब उसी के जघन्य स्थिति की उदीरणा होती है। इस तरह जघन्य से अजघन्य और अजघन्य से जघन्य उदीरणा होते रहने से वे दोनों सादि-अध्रुव (सांत) हैं। ____ आयु की जघन्य स्थिति की उदीरणा के सिवाय शेष समस्त अजघन्य स्थिति-उदीरणा है और वह समयाधिक पर्यन्तावलिका शेष रहे तब नहीं होती है। क्योंकि समयाधिक पर्यन्तावलिका शेष रहे तब जघन्य स्थिति-उदीरणा होती है तथा परभव में उत्पत्ति के प्रथम समय मे अजघन्य स्थिति-उदीरणा होती है, अतः वह सादि-सांत
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