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पंचसंग्रह
इस प्रकार से स्थिति - उदीरणा का लक्षण जानना चाहिये | अब भेदों का प्रतिपादन करते हैं
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ज्ञानावरण आदि कर्मों की दो आवलिकान्यून उत्कृष्ट स्थिति जितनी हो, उतनी उत्कृष्ट से उदीरणायोग्य स्थिति है । यानि दो आवलिकान्यून उत्कृष्ट स्थिति पर्यन्त के जितने समय होते हैं, उतने स्थितिस्थान उदीरणा के योग्य हैं ।
अब इसी बात को स्पष्ट करते हैं- उदय होने पर जिन प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिबंध होता है, उनकी उत्कृष्ट से दो आवलिका न्यून समस्त स्थिति उदीरणायोग्य है । जैसे कि ज्ञानावरण आदि जिन प्रकृतियों का उदय हो तब उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होता है, उनकी बंधा. वलिका जाने के बाद उदयावलिका से ऊपर की समस्त स्थिति की उदीरणा की जाती है। इस प्रकार उदयबंधोत्कृष्टा प्रकृतियों की आवलिकाद्विक न्यून उत्कृष्ट स्थिति उत्कृष्ट उदीरणायोग्य होती है तथा जिन नरकगति आदि कर्मप्रकृतियों का उदय - रसोदय न हो तब उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होता है, उनका यथासंभव उदय हो तब जितनी स्थिति सत्ता में होती है, उसमें से उदयावलिका रहित शेष स्थितियां उदीरणायोग्य होती हैं ।
दो आवलिकान्यून उत्कृष्ट स्थिति के जितने समय हों उतने स्थिति उदीरणा के प्रभेद जानना चाहिये । वे इस प्रकार - उदयावलिका से ऊपर की समय मात्र स्थिति किसी को उदीरणायोग्य होती है कि जिसे सत्ता में उतनी ही स्थिति शेष रही हो। इसी तरह किसी को दो समयमात्र, वि.सी को तीन समयमात्र, इस प्रकार बढ़ते हुए यावत् विसी को दो आवलिका न्यून उत्कृष्ट स्थिति उदीरणायोग्य होती है । जिससे आवलिकाद्विक न्यून उत्कृष्ट स्थिति के जितने समय उतने उदीरणा के स्थान -भेद समझना चाहिये ।
इस प्रकार से उदीरणा के भेदों का कथन करने के अनन्तर अब क्रमप्राप्त साद्यादि प्ररूपणा का विचार करते हैं । यह प्ररूपणा मूल
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