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________________ ( २६ ) गाथा ८६ १२०-१२१ आयुचतुष्क का उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा स्वामित्व १२१ गाथा ८७ १२१-१२२ एकान्त तिर्यंच उदयप्रायोग्य प्रकृतियों व अपर्याप्त नाम का उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा स्वामित्व १२२ गाथा ८८ १२२-१२३ सयोगि केवली गुणस्थान उदययोग्य प्रकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा स्वामित्व १२३ अंतरायपंचक, सम्यक्त्वमोहनीय का उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा स्वामित्व १२३ गाथा ८६ १२४-१२६ समस्त उत्तर प्रकृतियों का जघन्य अनुभागोदीरणा स्वामित्व १२४ परिशिष्ट-- उदीरणाकरण-प्ररूपणा अधिकार : मूल गाथाएँ १२७ २ गाथानुक्रमणिका १३५ ३ प्रकृत्युदीरणापेक्षा मूलप्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा स्वामित्व प्रकृत्युदीरणापेक्षा उत्तर प्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा स्वामित्व १४० ५ स्थित्युदोरणापेक्षा मूल प्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा का प्रारूप १४७ ६ स्थिति उदीरणापेक्षा उत्तर प्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा का प्रारूप १४८ ७ मूलप्रकृतियों का स्थिति-उदीरणा प्रमाण एवं सामित्व १५१ ८ उत्तरप्रकृतियों का स्थिति-उदीरणा प्रमाण एवं स्वामित्व < १५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001905
Book TitlePanchsangraha Part 08
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages230
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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