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________________ गाथा ७७ हुंडसंस्थान, उपघात, साधारण, पराघात, आतप, उद्योत का जघन्य अनुभागोदीरणा स्वामित्व गाथा ७८ ( २८ ) सेवार्त संहनन, मृदु-लघु स्पर्श, प्रत्येक नाम का जघन्य अनुभागोदीरणा स्वामित्व गाथा ७६ कर्कश, गुरुस्पर्श, अशुभ ध्रुवोदया नामनवक, तीर्थंकर नाम का जघन्य अनुभागोदीरणा स्वामित्व गाथा ८० पूर्वोक्त से शेष प्रकृतियों का जघन्य अनुभागोदीरणा स्वामित्व समस्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट - जघन्य अनुभागोदीरणा स्वामित्व का बोधक नियम गाथा ८१ प्रदेशोदीरणा के अर्थाधिकार मूल प्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा गाथा ८२ उत्तर प्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा गाथा ८३ घाति प्रकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा स्वामित्व Jain Education International For Private & Personal Use Only १०७-१०८ - १०७ १०८ १०८ १०६ - ११० गाथा ८४ वेदनीय, अंतिम संहननपंचक, वैक्रियसप्तक, आहारकसप्तक, उद्योत नाम का उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा स्वामित्व गाथा ८५ तिर्यंचगति, आनुपूर्वीचतुष्क, नरक-देवगति, दुर्भगचतुष्क, नीच गोत्र का उत्कृष्ट प्रदेशोदीरणा स्वामित्व १०६ ११०-११२ ११० ११० ११२ – ११४ ११२ ११३ ११४--११६ ११५ ११६ – ११६ ११६ ११६ ११६ ११६ - १२० १२० www.jainelibrary.org
SR No.001905
Book TitlePanchsangraha Part 08
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages230
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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