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________________ १०६ पंचसंग्रह : ८ शुभवर्णादिनवक, अगुरुलघु, स्थिर, शुभ और निर्माण रूप शुभ ध्र वोदया बीस प्रकृतियों के जघन्य अनुभाग की उदीरणा का स्वामी है तथा स्वप्रायोग्य संक्लिष्ट परिणाम वाला आहारक यति (प्रमत्तसंयतगुणस्थानवर्ती मुनि) आहारकसप्तक के जघन्य अनुभाग की उदीरणा करता है। पुण्यप्रकृतियों के जघन्य अनुभाग की उदीरणा अति संक्लिष्ट परिणामी के होती है और वैसा संक्लेश प्रथम गुणस्थान में होता है। इसीलिये ध्र वोदया बीस शुभप्रकृतियों की उदोरणा के लिये मिथ्यादृष्टि का ग्रहण किया है और अति अल्प योग-बल लेने के लिये विग्रहगति में वर्तमान जीव का संकेत किया है । तथाअप्पाउ रिसभचउरंसगाण अमणो चिरट्ठिइ चउण्ह । संठाणाण मणूओ संघयणाणं तु सुविसुद्धो ।।७६॥ शब्दार्थ-अप्पाउ-अल्प आयु वाला, रिसभचउरंसगाण-वज्र ऋषभनारा वसंहनन और समचतुरस्रसंस्थान के, अमणो-असंजी, चिरट्ठिइदीर्घ स्थिति वाला, च उण्ह-चार, संठाणाण-संस्थानों के, मणूओ- मनुष्य, संघयणाणं--संहननों के, तु-और, सुविसुद्धो-सुविशुद्ध परिणाम वाला। गाथार्थ-अल्प आयु वाला असंज्ञी वज्रऋषभनाराचसंहनन और समचतुरस्रसंस्थान के एवं दीर्घ स्थिति वाला असंज्ञी चार संस्थान के और विशुद्ध परिणाम वाला मनुष्य चार संहनन के जघन्य अनभाग की उदीरणा का स्वामी है। विशेषार्थ-अल्प आयु वाला. अतिसंक्लिष्टपरिणामी भव के प्रथम समय में वर्तमान आहारी और मिथ्यादृष्टि असंज्ञी पंचेन्द्रिय वज्रऋषभनाराचसंहनन और समचतुरस्रसस्थान के जघन्य अनुभाग की उदीरणा का स्वामी है। क्योंकि ये प्रकृति शुभ हैं, अतएव इनकी जघन्य अनुभाग-उदीरणा में क्लिष्टपरिणाम हेतु हैं तथा अल्प आयु वाला क्लिष्ट परिणामी होता है, इसलिये यहाँ अल्पायु यह विशेषण दिया है । तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001905
Book TitlePanchsangraha Part 08
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages230
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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