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________________ ८९ उदीरणाकरण-अरूपणा अधिकार : गाथा ६० पांच नोकषाय और असातावेदनीय की उत्कृष्ट अनुभाग-उदीरणा होती है। विशेषार्थ-समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त मध्यमपरिणाम वाले एवं तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त जीव के निद्रा आदि पाँचों निद्राओं की उत्कृष्ट अनुभाग-उदीरणा होती है। क्योंकि अत्यन्त विशुद्ध और अत्यन्त संक्लिष्ट परिणाम वाले के किसी भी निद्रा का उदय ही नहीं होता है, इसीलिये मध्यमपरिणाम वाले का ग्रहण किया है और अपर्याप्तावस्था में भी तीव्र निद्रा का उदय नहीं होने से पर्याप्तावस्था ग्रहण की है । तथा नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा इन पांच नोकषायों और असातावेदनीय की उत्कृष्ट अनुभाग-उदीरणा का स्वामी उत्कृष्ट आयु वाला और समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त नारक जानना चाहिए। उत्कृष्ट आयु वाले सातवें नरक के पर्याप्त नारक के इन पाँच प्रकृतियों के उत्कृष्ट रस की उदीरणा सम्भव है। क्योंकि अत्यन्त पाप करने पर सातवीं नरक पृथ्वी प्राप्त होती है तथा अपर्याप्त से पर्याप्तावस्था में योग अधिक होने से पर्याप्त का ग्रहण किया है । तथापंचेन्द्रियतसबायरपज्जत्तगसायसुस्सरगईणं । वेउव्वुस्सासस्स य देवो जेट्ठट्ठिति समत्तो ॥६०।। शब्दार्थ-पंचेन्दिय-पंचेन्द्रियजाति, तसबायरपज्जत्तग-त्रस, बादर, पर्याप्त. सायसुस्सरगईणं-सातावेदनीय, सुस्वर, देवगति की, वेउवुस्सासस्सबैंक्रिय (सप्तक), उच्छ्वासनाम की, य-और, देवो-देव, जेठितिउत्कृष्ट स्थिति वाला, समतो-- सम्पूर्ण पर्याप्ति वाला-पर्याप्त । गाथार्थ-पंचेन्द्रियजाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सातावेदनीय, सुस्वर, देवगति, वैक्रियसप्तक और उच्छवासनाम की उत्कृष्ट स्थिति वाला पर्याप्त देव उत्कृष्ट अनुभाग-उदीरणा का स्वामी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001905
Book TitlePanchsangraha Part 08
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages230
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size10 MB
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