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पंचसंग्रह : ७ अब श्रेणि की अपेक्षा जिस पतद्ग्रहस्थान में जो संक्रमस्थान संक्रमित होते हैं, उनका कथन करते हैं । श्रेणि की अपेक्षा पतद्ग्रहस्थानों में संक्रमस्थान
दसगट्ठारसगाई चउ चउरो संकमंति पंचमि ।
सत्तडचउदसिगारसबारसद्वारा उक्कमि ॥१६॥ शब्दार्थ-दसगट्ठारसगाई-दस और अठारह आदि, चउ–चार, चउरो-चार, संकमंति--संक्रमित होते हैं, पंचंमि-पांच पतद्ग्रहस्थान में, सत्तडचउदसिगारसबारसट्ठारा--सात, आठ, चार, स, ग्यारह, बारह और अठारह, चउक्कमि-चार प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में ।
गाथार्थ---दस और अठारह आदि चार-चार संक्रमस्थान पांच प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में तथा सात, आठ, चार, दस, ग्यारह, बारह और अठारह प्रकृतिक ये सात संक्रमस्थान चार प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में संक्रमित होते हैं। विशेषार्थ-गाथा में श्रेण्यापेक्षा किस पतद्ग्रहस्थान में कितने और कौन-कौन संख्या वाले संक्रमस्थान संक्रमित होते हैं, यह स्पष्ट किया है---
पांच प्रकृतिरूप पतद्ग्रहस्थान में दस, ग्यारह, बारह और तेरह तथा अठारह, उन्नीस, बीस और इक्कीस प्रकृतिक यह चार-चार संक्रमस्थान संक्रांत होते हैं। उनमें क्षपकश्रेणि में अन्तरकरण करने के गद नपुसकवेद और स्त्रीवेद का क्षय होने के बाद अनुक्रम से ग्यारह और दस प्रकृतियां पांच में संक्रमित होती हैं एवं उपशमणि में उपशमसम्यग्दृष्टि के अनुक्रम से अप्रत्याख्यानावरण-प्रत्याख्यानावरण क्रोध तथा संज्वलन क्रोध उपशामित होने पर ग्यारह और दस प्रकृतियां पांच प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में संक्रमित होती हैं और बारह प्रकृतियों का पांच में संक्रमण क्षपकश्रोणि में ही होता है तथा वह भी अन्तरकरण करने के बाद नपुसकवेद का क्षय न हो, वहाँ तक होता है
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