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________________ पंचसंग्रह : ७ संक्रम-पतद्ग्रहस्थानों की साद्यादि प्ररूपणा संक्रमण पडिग्गहया पढमतइज्जट्ठमाणचउभेया। इगवीसो पडिग्गहगो पणुवीसो संकमो मोहे ॥१३॥ शब्दार्थ-संकमण पडिग्गहया-संक्रमणता और पतद्ग्रहता, पढमतइज्जट्ठमाण---पहले, तीसरे और आठवें कर्म की, चउभेया–चार प्रकार की है, इगवीसो—इक्कीस प्रकृति रूप, पडिग्गहगो-पतद्ग्रह, पणुवीसो-पच्चीस प्रकृति रूप, संकमो-संक्रमस्थान, मोहे—मोहनीयकर्म में। गाथार्थ--पहले, तीसरे और आठवें कर्म की संक्रमणता और पतद्ग्रहता चार प्रकार की है और मोहनीयकर्म में इक्कीस प्रकृति रूप पतद्ग्रह और पच्चीस प्रकृति रूप संक्रम भी चार प्रकार का है। विशेषार्थ-गाथा में ज्ञानावरण, वेदनीय और अन्तराय कर्म के सभी प्रकृतिस्थानों के संक्रम तथा पतद्ग्रह के सादि आदि चारों भंगों को तथा मोहनीयकर्म के इक्कीस प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान एवं पच्चीस प्रकृतिक संक्रमस्थान के अंगों को बतलाया है। जिसका विस्तार के साथ स्पष्टीकरण इस प्रकार है। ज्ञानावरण और अन्तराय कर्म की प्रकृतियों के संक्रम और पतद्ग्रह स्थानों के साद्यादि भंग ज्ञानावरण और अन्तराय कर्म में संक्रमत्व और पतद्ग्रहत्व सादि, अनादि, ध्रुव और अध्र व इस तरह चार प्रकार का है । जो इस प्रकार-उपशांतमोहगुणस्थान में इन दोनों कर्मों का बंध नहीं होने से पतद्ग्रहत्व नहीं है और पतद्ग्रह नहीं होने से संक्रमत्व भी नहीं होता है। वहाँ से पतन करने पर दोनों प्रवर्तित होते हैं, इसलिये सादि हैं। उस स्थान को जिन्होंने प्राप्त नहीं किया उनके अनादि, अभव्य के ध्रुव और भव्य के संक्रम तथा पतद्ग्रह ये दोनों अध्र व-सांत हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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