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________________ संक्रम आदि करणत्रय - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ११, १२ तत्पश्चात् पुरुषवेद की प्रथम स्थिति समय न्यून दो आवलिका शेष रहने पर वह पतद्ग्रह नहीं रहता है, इसलिये पांच में से उसे कम करने पर शेष चार प्रकृतिक पतद्ग्रह में वही दस प्रकृतियां समय न्यून दो आवलिका पर्यन्त संक्रमित होती हैं। उसके बाद छह नोकषायों का क्षय होने पर शेष चार प्रकृतियां समयोन दो आवलिका पर्यन्त उसी चार प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में संक्रमित होती हैं । ४३ जिस समय पुरुषवेद का क्षय हुआ उसी समय संज्वलन क्रोध भी पतद्ग्रह नहीं होता है । इसलिये उसके सिवाय शेष मान, माया लोभ इन तीन प्रकृतियों में क्रोध, मान, माया ये तीन प्रकृतियां अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त संक्रांत होती हैं । संज्वलन क्रोध का बंधविच्छेद होने के बाद समय न्यून दो आवलिका काल में संज्वलन क्रोध का क्षय होता है और उसी समय संज्वलन मान पतद्ग्रह रूप नहीं रहता है, जिससे शेष दो प्रकृतियों का दो प्रकृतियों में अन् हूर्त पर्यन्त संक्रम होता है । संज्वलन मान का बंधविच्छेद होने के बाद समयोन दो आवलिका काल में संज्वलन मान का भी सत्ता में से नाश हो जाता है और उसी समय संज्वलन माया की भी पतद्ग्रहता नहीं रहती है, जिससे एक संज्वलन लोभ रूप पतदुग्रहस्थान में संज्वलन माया रूप एक प्रकृति अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त संक्रमित होती है । संज्वलन माया का बंधविच्छेद होने के बाद समय न्यून दो आवलिकाकाल में संज्वलन माया का भी सत्ताविच्छेद होता है, तब उसके बाद कोई प्रकृति किसी प्रकृति में संक्रमित नहीं होती है । इस प्रकार से क्षपकश्रेणि में वर्तमान क्षायिक सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा संक्रम और पतद्ग्रह विधि जानना चाहिये । अब पूर्वोक्त कर्मप्रकृतियों के संक्रमस्थानों और पतद्ग्रहस्थानों की साद्यादि प्ररूपणा करते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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