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पंचसंग्रह : ७
इस प्रकार से मोहनीयकर्म के संक्रमस्थानों का विचार करने के बाद अब पतद्ग्रहस्थानों का निर्देश करते हैं । मोहनीयकर्म के पतद्ग्रहस्थान
पतद्ग्रहस्थान आधारभूत प्रकृतियों के समुदाय को कहते हैं। अतएव मोहनीयकर्म के पतद्ग्रहस्थानों का कथन करने के लिये पहले बंधस्थानों को बतलाते हैं कि बाईस, इक्कीस, सत्रह, तेरह, नौ, पांच, चार, तीन, दो और एक प्रकृतिक, ये मोहनीयकर्म के दस बंधस्थान हैं । किन्तु पतद्ग्रहस्थान इन दस बंधस्थानों से आठ अधिक होने से अठारह हैं। वे इस प्रकार-आठ, बारह, सोलह, बीस ये चार तथा गाथा में वीसा के बाद आगत 'य, च' शब्द अनुक्त अर्थ का समुच्चायक होने से तेईस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस और अट्ठाईस प्रकृतिक ये छह कुल मिलाकर दस स्थान पतद्ग्रह के विषयभूत न होने से शेष अठारह पतद्ग्रहस्थान होते हैं । अर्थात् एक, दो, तीन, चार, पांच, छह, सात, नौ, दस, ग्यारह, तेरह, चौदह, पन्द्रह, सत्रह, अठारह्, उन्नीस, इक्कीस और बाईस प्रकृतिक, ये अठारह पतद्ग्रहस्थान हैं।
इन पतद्ग्रहस्थानों में कौन और कितनी प्रकृतियां संक्रमित होती हैं, अब इसका विचार करते हैं- .
अट्ठाईस की सत्ता वाले मिथ्यादृष्टि के मिथ्यात्व सम्यक्त्व और मिश्र मोहनीय की पतद्ग्रह होने से, उसके सिवाय शेष सत्ताईस प्रकृतियां मिथ्यात्व, सोलह कषाय तथा तीन वेद में से बंधने वाला कोई एक वेद, युगलद्विक में से बंधने वाला एक युगल, भय और जुगुप्सा रूप बाईस प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में संक्रमित होती हैं।
सम्यक्त्व की उद्वलना करे तब सत्ताईस की सत्ता वाले उसी मिथ्यादृष्टि के मिथ्यात्व ये मिश्रमोहनीय की पतद्ग्रह होने से उसके बिना शेष छब्बीस प्रकृतियां पूर्वोक्त बाईस प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में संक्रमित होती हैं।
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