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________________ ( २८ ) गाथा ८२ १८६-१९. यथाप्रवृत्तसंक्रम के अपहार काल का प्रमाण १६० गाथा ८३, ८४ १६१-१६४ प्रदेशसंक्रमापेक्षा उत्तरप्रकृतियों की साद्यादि प्ररूपणा १६१ साद्यादि भंग प्ररूपणा का प्रारूप १६४ गाथा ८५, ८६, ८७, ८८, ८९ १९५-२०१ उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम स्वामित्व प्ररूपणा के प्रसंग में गुणित कर्मांश का स्वरूप निर्देश गाथा ६० २०१-२०२ औदारिकसप्तक आदि इक्कीस प्रकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेश संक्रम स्वामित्व २०२ सातावेदनीय का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम स्वामित्व २०२ गाथा ६१ २०३-२०४ दर्शनावरण, वेदनीय, नाम, गोत्र कर्म की बत्तीस अशुभ प्रकृ- . तियों का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमस्वामित्व २०३ गाथा ६२ २०४-२०५ दर्शनमोहत्रिक का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम स्वामित्व २०४ गाथा ९३ २०५-२०६ अनन्तानुबंधि का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम स्वामित्व २०५ गाथा ६४, ६५, ६६, ६७ २०६-२११ वेदत्रिक का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम स्वामित्व २०६ संज्वलनत्रिक का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम स्वामित्व २११ गाथा १८ २१२-२१४ संज्वलनलोभ, गोत्रद्विक का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम स्वामित्व २१२ गाथा ६६ २१४-२१७ पराघात आदि शुभ ध्रुवबंधिनी तेरह प्रकृतियों का उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम स्वामित्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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